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कौंसिल में हिन्दी


वाले कोई ४१ करोड़ और उर्दू जाननेवाले केवल ४१ लाख हैं। अर्थात् १० हजार आदमियों में से ९,११६ आदमी हिन्दी और केवल ८५३ उर्दू बोलनेवाले हैं । अतएव गवर्नमेंट को मेरी बात मान लेनी चाहिए और मुन्सिफ़ो तथा सब-जजों के लिए यह आज्ञा हो जानी चाहिए कि वे देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा भी लिख-पढ़ सकने की योग्यता प्राप्त कर लिया करें।

माननीय लाला मधुसूदनदयाल ने इस पुस्ताव का अनुमोदन किया।

इसका विरोध माननीय नवाब अब्दुलमजोद ने किया। आपने प्रस्ताव के शब्दों का कुछ भी खयाल न करके अधिकतर अप्रासङ्गिक बातों हा के द्वारा अपने हृदय के विकार प्रकट किये । आपने कहा---

(क) हिन्दी उर्दू का झगड़ा ज़िन्दा रखने ही के लिए यह प्रस्ताव उपस्थित किया गया है।

(ख ) उर्दू-भाषा मुसलमानों ही की बदौलत अस्तित्व में आई और उन्नति को पहुंची है। वह अब सारे भारत की राष्ट्र-भाषा ( Lingua Franca ) है । देहाती गंवार तक उसे बोल सकते और समझ सकते हैं। जिसे हिन्दी कहते हैं वह सर्वसाधारण की भाषा नहीं।

(ग) अंगरेज़ी राज्य के पहले हिन्दी भाषा का नाम तक किसीको न मालम था। हिन्दी-लिपि शायद रही हो,पर उस लिपि में अपने विचार प्रकट करनेवाले लोग गंवार ही समझे जाते थे।