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साहित्यालाप

कल अधिक सभ्य और शिक्षित गिना जाता है। जिस तरह उसने शिक्षा की प्राप्ति की होगी उसी तरह हम भी करने को तैयार हैं।

मान लीजिए कि हमारे प्रान्त में यह सुधरी हुई रोमन-लिपि-माला कचहरियों और स्कूलों में जारी कर दी गई और कह दिया गया कि जिसका जी चाहे इसे सीखे और इसीमें लिखे पढ़ें। आप जानते हैं, इसका क्या फल होगा। कुछ दिनों में अरबी और नागरी, दोनों लिपियों को अध्र्दचन्द्र मिल जायगा, क्योंकि अंगरेज़ अफसर इसी लिपि को सहज में लिख पढ़ सकेंगे। इसी कारण स्वभावतः वे इसीको पसन्द करेंगे । हाकिमों के सुभीते के लिए वकील, मुख्तार, अर्जीनवीस इत्यादि इसीसे काम लेने लगेंगे। जब इस प्रकार कचहरियों में इस लिपि का प्रायः आधिपत्य हो जायगा, तब देवनागरी और अरबी लिपि का कितना आदर होगा ? यदि यह सुधरी हुई वर्णमाला जारी हो जायगी तो लोगों को इसे भी सीखना पड़ेगा । जिस वर्तमान रोमन-लिपि में अँगरेजी लिखी जाती है उसेतो सीखना ही पड़ेगा। और, अपना अपना धर्म-कर्म जानने के लिए हिन्दुओं को देवनागरी और मुसलमानों को अरबी लिपि का भी अभ्यास करना होगा। अर्थात् अभी तक तीन ही लिपियां, इन प्रांतों में, प्रचलित हैं। पादरी साहब की बदौलत यदि एक और भी प्रचलित हो गई तो चार हो जायंगी। जब तीन सीखना पड़ती हैं तब तो शिक्षा का यह हाल है, चार हो जाने पर उसके प्रचार और विस्तार का क्या कहना है । सो यह नई