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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३१४

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वक्तव्य

१७-रामन-लिपि के भावी माक्रमण से भय

जिस फारसी-लिपि में उर्दू लिखी जाती है वह और देवनागरी लिपि इस देश में सैकड़ों वर्षों से प्रचलित हैं और जब तक हिन्दुओं और मुसलमानों का अस्तित्व है तब तक शायद प्रचलित रहेगी। उनके पक्षपातियों में पारस्परिक विरोध न होना चाहिए और यदि दुदैववश हो भी जाय तो उससे विशेष भय नहीं। भय एक और ही लिपि के आक्रमण से है और दोनों ही को है-हिन्दुओं को भी और मुसल्मानों को भी। इस आक्रमण का सूत्रपात भी हो गया है। यह लिपि रोमन-लिपि है।

जिस तरह हमारे वर्ण-विभाग, हमारे जाति-भेद, हमारे आचार-विचार आदि में कुछ लोगों को---और इन लोगों में हमारे दो चार स्वदेशी सपूत भी शामिल हैं-दोष ही दोष देख पड़ते हैं वैसे ही उन्हें हमारी देवनागरी लिपि में भी दोष ही दोष देख पड़ते हैं, गुण एक भी नहीं। वे कहते हैं कि हमारी लिपि किसी काम की नहीं। वह सुडौल और सुन्दर नहीं ; वह जगह बहुत घेरती है ; वह शाघ्रतापूर्वक लिखी नहीं जाती। उसमें अक्षरों की अनावश्यक अधिकता है । ह्रस्व-दीर्घ की, संयुक्ताक्षरो की, षत्व और णत्व की जटिलता के कारण वह और भी क्लिष्ट हो गई है। फल यह हुआ है कि छोटे छोटे बच्चों को उसे सीखने में बहुत कष्ट मिलता है; महीनों का काम वर्षों में होता है ; शिक्षा-सम्पादन में बहुत विघ्न आता है। यदि उसका बहिष्कार कर दिया जाय और