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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/३३२

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आज कल के छायावादी कवि और कविता


रवि बाबू की गोपनशील कविता ने हिन्दी के कुछ युवक कवियों के दिमाग में कुछ ऐसी हरकत पैदा कर दी है कि वे असम्भव को सम्भव कर दिखाने की चेष्टा में अपने श्रम, समय और शक्ति का व्यर्थ ही अपव्यय कर रहे हैं । जो काम रवीन्द्रनाथ ने चालीस पचास वर्ष के सतत अभ्याल और निदिध्यास की कृपा से कर दिखाया है उसे वे स्कूल छोड़ते हो, कमर कसकर कर दिखाने के लिए उतावले हो रहे हैं । कुछ तो स्कूलों‌ और कालेजों में रहते ही रहते छायावादी कवि बनने लग गये हैं। यदि ये लोग रवीन्द्रनाथ हो की तरह सिद्ध कवि हो जायं और उन्हींकी जैसी गुह्यातिगुह्य कवित्व रचना करने में भी समर्थ हो जाय तो कहना पड़ेगा कि किसी दिन-

विन्ध्यस्तरेत् सागरम् ।

कविता किस उद्देश से की जाती है ? ख्याति के लिए,यश प्राप्ति के लिए, धर्नाजन के लिए या दूसरों के मनोरञ्जन के लिए । इन के सिवा तुलसीदास की तरह "स्वान्त:सुखाय" भी कविता की रचना होती है । परमेश्वर का सम्बोधन करके कोई कोई कवि आत्म-निवेदन भी, कविता-द्वारा ही, करते हैं। पर ये बातें केवल भक्त कवियों ही के विषय में चरितार्थ होती हैं। अस्मदादि लौकिक जन तो और ही मतलब से कविता करते या लिखते हैं और उनका वह मतलब ख्याति, लाभ और मनोरञ्जन आदि के सिवा और कुछ हो ही नहीं सकता। इन सभी उद्देशों की सिद्धि तभी हो सकती है जब कवि की कविता का आशय दूसरों की समझ में झट आ जाय। क्योंकि जो