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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/६१

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साहित्यालाप


कीजिए कि गवर्नमेंट ने ऐसा करना मंज़ूर न किया तो क्या इस लिपि को प्रचलित करने का और कोई मार्ग ही नहीं और कोई उपाय ही नहीं ? है क्यों नहीं। अवश्य है। ऐसे अनेक स्कूल हैं जिनपर गवर्नमेंट का कोई स्वत्व नहीं ; वे सर्वथा प्रजा ही के खर्च से चलते हैं । उनमें हिन्दीलिपि की शिक्षा प्रारम्भ कर दी जाय। इस प्रकार के जितने स्कूल हैं सबमें हिन्दी लिपि यदि सिखलाई जाय तो वर्ष ही छ:महीने में हज़ारों नहीं, लाखों, लड़के और लड़कियाँ, देश में हिन्दी लिखने लगें; और इस लिपि को व्यापक लिपि करने में बहुत सहायता मिले। देश के कल्याण के लिए, देश के मङ्गल के लिए, इस मृतक देश को फिर सजीव करने के लिए, यह क्या कोई बड़ा बात है?

यदि हिन्दी लिपि प्रचलित हो जाय तो दूसरी लिपि के आज तक जो असंख्य उत्तमोत्तम ग्रन्थ निकल चुके हैं उनका क्या हो ? अनन्त धन जो छापेखानों के मालिकों और व्यापारियों ने इन ग्रन्थों के लिए लगाया है उसकी क्या दशा हो ? उस हानि से किस प्रकार निस्तार हो ? ये बातें भी सहसा मन में उठती हैं और थोड़ी देर के लिए एक लिपि की असम्भवनीयता प्रकट करती हैं। परन्तु, विचार करने से यह असम्भवनीयता जाती रहती है। जो पुस्तकें, जो काग़ज़त, जो दस्तावेज़ इस समय बँगला, गुजराती और तामील आदि भाषाओं की लिपियों में हैं उनको वैसे ही रहने देना चाहिए। पुस्तकें जब दुबारा छपें तब उनकी लिपि हिन्दी कर देने से काम निकल