पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/८३

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६—हिन्दी भाषा और उसका साहित्य।

इस विषय में अनेक लेख समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं; पुस्तकें तक लिखी जा चुकी हैं। अतएव यहां पर, इस सम्बन्ध में, कुछ लिखना पिष्ट-पेषण ही होगा। तथापि, कई सज्जनों की प्रेरणा से हम भी, इस विषय में, कुछ लिखने के लिए विवश किये गये हैं । यह विषय गहन है; इसके लिए विशेष स्थल, विशेष विद्या बुद्धि और विशेष योग्यता अपेक्षित है। अतः, इस छोटे से लेख में, हम, यथाशक्ति और यथामति,स्थूल ही स्थूल बातों का विवेचन करेंगे।

पहले हम 'हिन्दी' शब्द की उत्पत्ति का विचार करना‌ चाहते हैं। हिन्दी के दो अर्थ हैं । एक 'हिन्दुओं की भाषा'; दूसरा 'हिन्द (हिन्दुस्थान) की भाषा'। ये दोनों अर्थ बहुत व्यापक हैं। दोनों ही यह सूचित करते हैं कि इस देश की प्रधान भाषा हिन्दी ही है । यदि इसे हिन्द की भाषा मानें तो यह सारे देश की भाषा हुई, और यदि हिन्दुओं की भाषा माने तो सारे हिन्दुओं की भाषा हुई । हिन्दू ही इस देश में और जातियों से अधिक बसते हैं । इसलिए, पहले अर्थ में भी हिन्दा की व्यापकता का गौरव, किसी प्रकार, कम नहीं। क्योंकि ऐसा कौन प्रान्त है जहां हिन्दू नहीं ? और ऐसी कौन जाति है जो हिन्दी नहीं समझती ! अतः, इस देश की यदि कोई एक भाषा हो सकती है तो वह हिन्दी ही है।