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हिन्दी भाषा और उसका साहित्य

नामदेव, कबीर और दाद इत्यादि भक्तों ने भी हिन्दी साहित्य के इसी विगाग के अन्तर्गत पद्य रचना की है। कबीर और दादू की कविता का बड़ा आदर है, परन्तु इनकी कविता सरल नहीं। दादू के कोई कोई पद्य बहुत ही अच्छे हैं। यद्यपि वे प्राचीन हैं तथापि कहीं कहीं उनकी कविता में प्राचीनता के विशेष चिह्न नहीं , गुरु नानक का आदि ग्रन्थ ( अर्थात् गुरु नानक से लेकर गुरु अर्जुन तक का संग्रह ) भी हिन्दी साहित्य ही के अन्तर्गत समझना चाहिए, क्योंकि उसकी भाषा पज्जाबी की अपेक्षा प्राचीन हिन्दी से अधिक मिलती है। गुरु नानक की मृत्यु १५३८ ईस्वी में हुई। कबीर, दादू और नामदेव, ये तीनों महात्मा गुरु नानक से पहले हुए हैं। इनके अतिरिक्त १२०० और १५७० ईस्वी के बीच मीराबाई, सारङ्ग-घर और राना कुम्भ इत्यादि कई और कवियों ने भी कविता की है, परन्तु रासौ के समान उनके ग्रन्थ प्रसिद्ध नहीं हैं और उन सबका उल्लेख इस निबन्ध में आ भी नहीं सकता। हां,१५६०में मलिक महम्मद जायसी ने पद्मावत नामक एक अच्छा काव्य बनाया। वह अब तक आदर के साथ पढ़ा जाता है। उसकी भाषा रासौ की भाषा के समान यद्यपि क्लिष्ट नहीं,तथापि हिन्दी के माध्यमिक साहित्य में गिने जाने के योग्य सरल भी नहीं।

प्राचीन हिन्दी-साहित्य में गद्य का तो नाम ही न लीजिए। पद्य में भी दो ही चार ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। भाषा के वाङमय की समग्र सामग्री को साहित्य कहते हैं, दो चार काव्यों को