पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/१३१

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११८ साहित्य का इतिहास-दर्शन

इसके विना कदाचित्‌ वार्टन को यह इतिहास लिखने का साहस ही नहीं होता । ठीक ही कहा गया है कि--

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हिंदी के जैसे-तैसे पुस्तकालय हैं भी और उसके भाषावेज्ञानिक तथा पाठमूलक वैदुष्य का यर्त्किचित्‌ विकास भी हुआ है, तो हमें एक दूसरी कठिनाई का सामना करना पड़ता है । साहित्यिक इतिहास की परिधि और पर्यवस्थिति परिभाषित करने के लिए आलोचनात्मक परंपरा आवश्यक है । हमारे यहाँ इसका अभाव हैं । पिछले दो-तीन दशकों में हिंदी की साहित्यिक परंपरा के मूल्यांकन पर विभिन्न लेखकों ने निबंधादि लिखें हैं, कितु उनके आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि हमारे पास संतोषजनक आलोचनात्मक परंपरा है ।

टिप्पणियाँ १॥ आऑतक्‍्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंगलिश लिट्रेचर, सं० एफू० पी० विल्सन तथा बोनामी डोब़ी, ऑक्सफोर्ड १६९४४, पृ० ५६ ।

२। उपरिवत्‌, पृ० ६४ ।

३॥.. '#िक्याएाव 9056, 6 प्राष्ठाणांब (7००४४४८०१ए, खंड ३२, शिशिर १६५६ में पृ० ७४ पर 86० ४/४०प९४० के एक निबंध में उद्धृत ।