पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/३४

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२६२। मान्दोक-न० । २६३ मार्जार –क०; न० । २६४ मालोक-न० । २९५ (श्री) मित्र ——न० । २९६ | मुञ्ज–क० ; शा०; सु०; सू०; दसवीं शताब्दी के अंत के; धारा-नरेश भोज के पूर्वाधिकारी । २६६। मुष्टिक––न० । ३००। ३०१ | ३०२। २६७। मुद्राङ्क न० । २९८ मुरारि - क०; सू०; नवीं शताब्दी के आरंभ के; बालवाल्मीकि उपनामधारी; अनघराघव के रचयिता । अध्याय ३ मृगराजक० ; न० । मेघारुद्र – कालिदास का ही अन्य नाम माना जाता है, पर संदिग्ध । यज्ञघोष-० । ३०३ | यशोधर्मा—–—सु०; आठवीं शताब्दी के; रामाभ्युदय नाटक के रचयिता । ३०४। युवतीसम्भोगकार न० । ३०५ युवराज–सू०; युवराज प्रह्लादन और ये एक ही माने गये हैं; गायकवाड़ ओरियं- टल सीरीज में प्रकाशित पार्थपराक्रम व्यायोग के रचयिता । ३०६। युवराजदिवाकर न० । ३०७ । युवसेन- शा०; सू०; न० । ३०८ | योगेश्वर – भवानंद और वसुकल्प के द्वारा प्रशंसित; न० । ३०६। योगोक-न० । ३१०। रघुनन्दन न० । ३११॥ रजकसरस्वती – कवयित्री, न० । २१ ३१२। रत्नाकर - शा०; सु०; राजानकरत्नाकरवागीश्वर काश्मीरनरेश अवन्तिवर्मा ( ८५५ - ८८४ ई० ) के समकालीन, हरविजयकाव्य तथा वक्रोक्तिपञ्चाशिका के रचयिता । ३१३। रथाङ्ग – क०; न० । ३१४। ३१५ | रन्तिदेव-काव्यशास्त्र और कोष के रचयिता के रूप में इनके उल्लेख मिलते हैं; न० । रविगुप्त —–—सु०; सू०; चन्द्रप्रभाविजय काव्य के रचयिता; वात्स्यायन कामसूत्र की जयमङ्गला टीका में इनका तथा इनके काव्य का उल्लेख । रामदास शा० ; न० । ३१६ | रविनाग–न० । ३१७१ राक्षस- शा० न० 1 ३१८ राजकुब्जदेव-दे० कुञ्जराज | ३१६। राजशेखर – समय प्राय: ८८०-९२० ई०; काव्यमीमांसा, कर्पूरमञ्जरी आदि के रचयिता; प्रसिद्ध । ३२० राजोक क० ; शा०; न० । ३२१। राम-०। ३२२॥