अध्याय ३ २७ संस्कृत के सुभाषित अपने आप में, आधुनिक अर्थ में साहित्येतिहास भले न हों, 'कवि- वृत्त-संग्रह' अवश्य हैं, यह जो हमारी स्थापना है, उसके अतिरिक्त इनमें और मौखिक परंपरा से प्राप्त असंख्य श्लोकों में, तथा अन्य प्रकार के प्राचीन ग्रंथों में भी, अनेकानेक कवियों के संबंध में बहुमूल्य विवरण विकीर्ण हैं | कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं:-- (क) सूक्तिमुक्तावली में, राजशेखरविषयक उल्लेख:-- अकालजलदेन्दो सा हृद्या वदनचन्द्रिका | नित्यं कविचकोरैर्या पीयते न च हीयते ॥ अकालजलदश्लो कैश्चित्रमात्मकृतैरिव जातः कादम्बरीरामो नाटके प्रवरः कविः ।। नदीनां मेकलसुता नृपाणां रगविग्रहः । कवीनां च सुरानन्दश्चेदिमण्डलमण्डनम् ॥ यायावरकुलश्रेणेर्हरियष्टेश्च मण्डनम् । सुवर्णवर्ण रुचिरस्तरलस्तरलो यथा ॥ (ख) सुभाषितावली (१२६) में प्राचीन अनेक कवियों के अतिरिक्त विद्यापतिविषयकः-- वाल्मीकप्रभवेण रामनृपतिर्व्यासेन धर्मात्मजः व्याख्यातः किल कालिदासकविना श्रीविक्रमाङ्को नृपः । भोजश्चित्तपविल्हणप्रभृतिभिः कर्णोपि विद्यापतेः ख्याति यान्ति नरेश्वराः कविवरैः स्फारैर्न भेरीरवैः ॥ (ग) शार्ङ्गधरपद्धति में कवयित्रियों के विषय में ( धनदेव- रचित छंद में): शीलाविज्जामारुलामोरिकाद्याः काव्यं कर्तुं सन्ति विज्ञाः स्त्रियोपि । विद्यां वेत्तुं वादिनो निविजेतुं विश्वं वक्तुं यः प्रवीणः स वन्द्यः ॥ (घ) राजतरङ्गिणी में, शिवस्वामी, आनन्दवर्द्धन, रत्नाकर प्रभृति विषयक ( ५, ३४ ) :- मुक्ताकण: शिवस्वामी कविरानन्दवर्द्धनः । प्रथां रत्नाकरश्चागात्सा म्राज्येऽवन्तिवर्मणः ॥ तथा वाक्पतिराज और भवभूतिविषयक (४,१४४):-- कविवाक्पतिराजश्री भवभूत्यादिसेवितः । जितो ययौ यशोवर्मा तद्गुणस्तुतिवन्दिताम् ॥ किंबहुना, संस्कृत की तरह पालि, प्राकृत और अपभ्रंश में भी इस प्रकार की साहित्येतिहास-संबंधी प्रभूत सामग्री तो है ही, साथ ही साथ एक प्रकार का साहित्येतिहास भी वर्तमान है । टिप्पणियाँ २। १। Sanskrit Grammar, Introduction, Leipzig, १८७६ ( दूसरा संस्करण, १८८६) । A History of Indian Literature, प्रथमं भाग, Introduction, पृप० २५ २६ (कलकत्ता, १९२७) । ३। उपरिवत् पृ०२७ । ४। इस दिशा में डॉ० देवसहाय त्रिवेद ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है; दे० उनका 'भारतीय तिथि- क्रम', जिसके कुछ अंश 'साहित्य' में और कुछ 'दृष्टिकोण' में प्रकाशित हुए हूं।
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