पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/४२

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अध्याय ४ साहित्यिक इतिहास की प्राचीन भारतीय परंपरा पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश में पाल भाषा में रचित दीपवंस, महावंस आदि पुस्तकों में भारत तथा लंका के राजनीतिक • तथा धार्मिक इतिहास संबंधी महत्त्वपूर्ण विवरण हैं और इन देशों के इतिहास के तिथि क्रम के निर्धारण के लिए भी प्रचुर सामग्री है। रिज डेविड्स ने ठीक ही कहा है कि इन ग्रंथों में दिया गया तिथि-क्रम उनसे किसी दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं, जो सैकड़ों वर्षों बाद तक इंग्लैंड और फांस में लिखी गई पुस्तकों में पाया जाता है।' जहाँ तक साहित्यिक इतिहास के विवरण का प्रश्न है पालि-ग्रंथों में यह प्रचुर परिमाण में विकीर्ण है। उदाहरणार्थ, चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के धम्मकित्ति महासामी के सद्धर्म- संग्रह के नवम अध्याय में एकाधिक पूर्ववर्ती लेखकों और उनकी कृतियों का उल्लेख मिलता है । इसी प्रकार पालि के दीपवंस, महावंस आदि अन्य दशाधिक वंश -प्रथों में बौद्ध साहित्य की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण आचार्यों के नाम और उनकी कृतियों के विवरण प्राप्त होते हैं । प्राकृत के सुभाषित संग्रहों में भी प्राकृत के अगणित गौण और विस्मृतप्राय कवियों की रचनाओं के उदाहरण प्राप्य हैं । हाल की सत्तसई के एक टीकाकार ने, सत्तसई में जिन कवियों के उदाहरण संगृहीत हैं, उनकी संख्या ११२ बताई है और दूसरे, भुवनपाल, ने ३८४ । हाल के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से भी प्राकृत के ऐसे अनेक कवियों के नाम प्राप्त होते हैं, जिनकी कोई रचना आज प्राप्य नहीं हैं । राजशेखर के सट्टक कर्पूरमञ्जरी में हरिउड्ड ( हरि- वृद्ध ), णन्दिउड्ड (नन्दिवृद्ध) तथा पोट्टिस का उल्लेख विदूषक के द्वारा इस प्रकार हुआ है: -- 'ता उज्जुअं जेव किं ण भणीअदि अम्हाणं चेडिआ हरिउड्डणन्दिउड्डपोट्टि सहाल पि पुरदो सुकईत्ति " जयवल्लभ का जअवल्लहं अथवा वज्जालग्ग भी ऐसा ही प्राकृत संग्रह है । इसमें प्राय: ७०० प्राकृत छंद संगृहीत हैं। इनमें से अनेक हाल के संग्रह में भी हैं । 1 इसी प्रकार अपभ्रंश में भी साहित्यिक इतिहास की, या उसके लिए उपयोगी, प्रचुर सामग्री सुलभ है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत 1 धवल कवि ने अपने महाकाव्य हरिवंश पुराण के आरंभ में अनेकानेक प्राग्भावी कवियों तथा उनकी कृतियों का उल्लेख किया है:-