६० अध्याय ८ ताओं ने भी इसी तरह ऐतिहासिक और शैलीक रूपों को स्थूल रीति से परिभाषित करने की चेष्टा की है । हाइनरिख वुल्फलिन ने कला के क्षेत्र में जिस शैलीक मानदंड को उद्भावित किया था, उसे सर्वप्रथम ओस्कार वालुत्सेल ने साहित्य के इतिहास पर घटित किया था । उसके, और अन्य विद्वानों के विवेचनों के परिणामस्वरूप ही साहित्य के इतिहास में 'बरोक' शब्द व्यवहृत होने लगा, और कालान्तर में कला के इतिहास के अन्य विभिन्न युगों के नामों को भी साहित्यिक इतिहास में प्रयुक्त किया जाने लगा । फिल्म स्त्राइख ' ने अपनी पुस्तक 'जर्मन क्लासिसिज्न एंड रोमांटिसिज्म' में इस प्रणाली का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है । स्त्राइख के अनुसार 'रोमांटिसिज्म' में 'बरोक' कला की, और 'क्लासिसिज्म' में 'रिनासा' कला की विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं । वुल्फिन ने कला के इतिहास में रुद्ध और मुक्त, इन दो रूपों की उद्भावना की है । स्त्राइवरुद्ध और मुक्त रूपों के विरोधों को साहित्यिक इतिहास में चरितार्थ सिद्ध करते हुए दिखाता है कि पूर्णतः शास्त्रीय रूप में तथा रूमानी कविता के मुक्त, अपूर्ण, खंडित और धूमिल रूप में भी ये ही विरोध हैं । स्त्राइख का विवेचन सूक्ष्म उक्तियों और मन्तव्यों से पूर्ण है, किंतु उसकी पद्धति सर्वथा निर्दोष नहीं है । इसकी तुलना में विभिन्न रूपों के अनेक बहुशैलीक इतिहास अधिक स्थायी महत्त्व के हैं । कार्ल वाइतोर' का 'हिस्ट्री ऑव द जर्मन ओड', ग्वेंथर म्वेलर का 'हिस्ट्री ऑव जर्मन साँग "" और हर्मन पाँग का 'पोएटिक इमेजरी"," या इस प्रकार के अन्य साहित्यिक शिल्प संबंधी अध्ययन, रूपों के शैलीक इतिहास के उल्लेखनीय दृष्टान्त हैं । जहाँ तक वास्लर और स्त्राव के शैली-विषयक विश्लेषण का प्रश्न है, वह सामान्य बौद्धिक इतिहास के क्षेत्र की वस्तु बन जाता है । जर्मन चिन्तन के क्षेत्र में यह सामान्य बौद्धिक इतिहास अत्यन्त विविधतापूर्ण और उर्वर आन्दोलन सिद्ध हुआ है । यह अंशतः साहित्य में प्रतिबिंबित दर्शन का इतिहास मात्र है । इस दिशा में विलहेल्म डिल्दे १२ ने पथ-प्रदर्शक का काम किया है। अर्न्स्ट केसिरर ", रुडोल्फ अंगर " और वर्नर जेगर" ने साहित्यिक विद्वत्ता के क्षेत्र में असाधारण महत्त्व के कार्य किये हैं । इनमें रुडोल्फ अंगर" के प्रयासों के फलस्वरूप मृत्यु, प्रेम, नियति जैसी शाश्वत 'समस्याओं से संबद्ध मनोवृत्तियों के इतिहास के प्रति एक अपेक्षाकृत स्वल्प बुद्धिवादी दृष्टिकोण का विकास संभव हुआ । अंगर में सशक्त धार्मिक भावना है । इसका प्रभाव भी उसकी प्रणाली पर पड़ा है । उसने हर्डर, नोवालिस और क्लाइस्त जैसे लेखकों की मृत्यु- संबंधी मनो- वृत्ति में परिवत्तन और सातत्य के सूत्रों का अन्वेषण कर इस पद्धति से एक छोटी-सी पुस्तिका लिखी है । पाल क्लुकोन" और वाल्टर रेहा " आदि अंगर के अनुयायियों ने मृत्यु और प्रेम की भावना के विभावन के अध्ययनों में इस प्रणाली को बड़े पैमाने पर प्रयुक्त और विक- सित किया है। किंतु इन विद्वानों ने साहित्य में प्रतिबिंबित संवेदना और भावना का इतिहास लिखा है, न कि स्वयं साहित्य का ही इतिहास | जर्मनी के साहित्यिक इतिहासकार अधिकांशतः प्रवृत्ति का इतिहास ( हिस्ट्री ऑव द स्पिरिट " ) निर्मित करने में प्रवृत्त रहे हैं। जैसा कि इस सिद्धांत के एक प्रवर्तक ने स्वयं कहा है—“वे बाह्य वस्तुओं के अंदर छिपी हुई संपूर्णता को ढूंढते हैं और सभी तथ्यों की व्याख्या समय की प्रवृत्ति के आधार पर करते हैं ।' इस प्रणाली के अनुसार सभी मानवीय व्यापारों में एक सार्वभौम समानता रहती है। व्यापकतर क्षेत्र में ओस्वाल्ड स्पेंग्लर का 'डिक्लाइन
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