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पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/७७

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अध्याय ६ पाश्चात्य साहित्यिक इतिहास

फ्रेंच

पश्चिम में उन्नीसवीं शताब्दी के साहित्यिक वैदुष्य की प्रणालियों के जो विकल्प वर्त्तमान शताब्दी में उपस्थित किये गये, वे पूर्वागत विधेयवाद के विरुद्ध विद्रोह के आधार हैं । हमने आगे अँगरेजी और जर्मन साहित्य के इतिहास दर्शन पर विचार करते हुए तत्तत् साहित्यों के इतिहासों एवं ऐतिहासिक विवेचनों में इस विद्रोह के आधार निर्दिष्ट किये हैं । जहाँ तक फ्रेंच साहित्य के इतिहास-दर्शन का प्रश्न है, वह उपर्युक्त साहित्यों के इतिहास-दर्शन की तुलना में अधिक नियंत्रित रहा है, और उन्नीसवीं शताब्दी के विधेयवाद के विरुद्ध होने वाले विद्रोह से भी वह प्रायः अछूता रहा है । फ्रेंच साहित्य के इतिहासकारों की यह गतानुगतिकता आश्चर्यजनक तो है, किंतु इसके कारण आसानी से ढूंढ़ निकाले जा सकते हैं । फ्रांस कभी जर्मनी के संघटित साहित्यिक तथ्यवाद से आक्रांत नहीं हुआ । फ्रांस के साहित्यिक इतिहासकारों ने, अधिक-से-अधिक प्रकृतवादी दृष्टिकोण अपनाने पर भी, सदैव स्पृहणीय नंदतिक और आलोचनात्मक विवेक का परिचय दिया है । फर्दिनें ब्रुनेतिएर प्राणिशास्त्रीय विकासवाद से अत्यधिक प्रभावित था, किंतु वह श्रेण्यवादी बना रहा; इसी प्रकार गुस्ताव लासों ने वैज्ञानिक आदर्श के साथ राष्ट्रीय चेतना और उसकी आध्यात्मिक एषणा के विभावनों का समन्वयन किया । फिर भी, प्रथम विश्व युद्ध के तुरत वाद फ्रांस में भी तथ्यवाद की विजय होती -सी दीख पड़ती है । भारी-भरकम महानिबंध ( the 'se ) ; फेरनाँद बालदेनस्पर्जेर के द्वारा अनुप्रेरित तुलना- त्मक साहित्य के सुसंघटित संप्रदाय का व्यापक प्रभाव; फ्रेंच भाषा के श्रेण्य ग्रंथों के अतिशय विशद संस्करण प्रस्तुत करने वाले विद्वानों की सफलता; डैनिएल मार्ने के सिद्धांत, जिसकी माँग थी कि गौतम लेखकों का भी विशद साहित्यिक इतिहास लिखा जाय; ये सभी इस बात के लक्षण हैं कि फ्रांस ने उन्नीसवीं शताब्दी के विशुद्ध ऐतिहासिक वैदुष्य को आयत्त करने की चेष्टा की थी । किंतु इसके साथ-ही-साथ फ्रांस में परिवर्तन के भी चिह्न लक्षित होते हैं और वह, जैसा सर्वत्र होता है, दो दिशाओं में प्रसारित होता है-नवीन संश्लेषण और नवीन विश्लेषण की ओर । फ्रांस के साहित्यिक इतिहासकार निर्भीक भाव से चित्रित बौद्धिक इतिहासों के क्षेत्र में विशेष रूप से सफल सिद्ध हुए हैं । उदाहरण के लिए, पाल हैजर्ड का Crise de la Conscience Europeenne उस परिवर्तन का कुशल प्रतिपादन है, जो सत्रहवीं शताब्दी के अंत में यूरोप में दिखाई पड़ा था । हैजर्ड ने अपने इस विस्तृत ग्रंथ में उस यूरोपीय चेतना के विभावन को अपनाया है जो प्राचीन विधेयवादी प्रणालियों को सर्वथा अग्राह्य था । एतिएँ