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फिल्म और साहित्य


की आवश्यकता को तो सब महसूस करते है,सिनेमा का विरोध भी जी खाल कर करते है, पर क्रियात्मक सहयोग का नाम सुनते ही अलग हो जाते हैं । सिर्फ इसलिए कि सिनेमा बदनाम है ओर यह चीज़ हमारे रोम-राम मे धसी हुई है, कि बद अच्छा बदनाम बुरा । क्या यह विड- म्बना नहीं है ? इस चीज़ को दूर करने मे क्या आप हमारी सहायता न करेंगे।

यह सब होते हुए हम सिनेमा सुधार के काम को आगे बढ़ाना चाहते है। नवयुवक लेखको के सिनेमा ग्रुप की योजना के लिए जमीन तैयार हो चुकी है, हम विस्तृत योजना भी शीघ्र प्रकाशित कर रहे हैं। इसके लिए जरूरत होगी एक निष्पक्ष सिनेमा-पत्र की । जब तक नहीं निकलता तब तक काफी दूर तक 'रंगभूमि' हमारा साथ दे सकती है। मेरा तो यह निश्चित मत है और मै सगर्व कह सकता हूँ कि इस लिहाज से 'रंगभूमि' भारतीय सिनेमा पत्रो मे सबसे आगे है । मै आपसे अनुरोध करूंगा कि आप 'रंगभूमि' की आलोचनाएँ जरूर पढा करे । पढ़ने पर आपको भी मेरे जैसा मत स्थिर करने मे जरा भी देर न लगेगी । इसका मुझे पूर्ण निश्चय है।

अाशा है कि आप भी सिनेमा-ग्रुप को अपना आवश्यक सहयोग देकर कृतार्थ करेंगे।

आपका
 
नरोत्तम प्रसाद नागर
 

नागर जी ने हमारे सिनेमा-सम्बन्धी विचारो को ठीक माना है, केवल हमारा जेनरेलाइज़ करना अर्थात् सभी को एक लाठी से हाकना उन्हे अनुचित जान पड़ता है । क्या वेश्याओ मे शरीफ औरते नहीं हैं लेकिन इससे वेश्यावृत्ति पर जो दाग है वह नही मिटता । ऐसी वेश्याएँ अपवाद है, नियम नहीं।

साधुओ और वेश्याओ मे मौलिक अन्तर है । साधु कोई इसलिए नहीं हाता कि वह मौज उड़ाएगा और व्यभिचार करेगा, हालाकि ऐसे