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रोमें रोलाँ की कला

 

रोमे-रोलाँ फ्रांस के उन साहित्य-स्रष्टाओं में है, जिन्होंने साहित्य के प्रायः सभी अङ्गों को अपनी रचनाओं से अलंकृत किया है और उपन्यास-साहित्य में तो वह विक्टर ह्यूगो और टाल्सटाय के ही समकक्ष है। उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'जान क्रिस्टोफ़र' के विषय में तो हम कह सकते हैं कि एक कलाकार की आत्मा का इससे सुन्दर चित्र उपन्यास-साहित्य में नहीं है। रोमे रोलाँ आत्मा और हृदय के रहस्यों को व्यक्त करने मे सिद्धहस्त हैं। उनके यहाँ विचित्र घटनाएँ नहीं होतीं, असाधारण और आदर्श चरित्र नहीं होते। उनके उपन्यास जीवन-कथा मात्र होते हैं, जिनमें हम नायक को भिन्न पर रोज़ आने वाली परिस्थितियों में सुख और दुःख, मैत्री और द्वेष, निन्दा और प्रशंसा, त्याग और स्वार्थ के बीच से गुजरते हुए देखते हैं-उसी तरह मानो हम स्वयं उन्हीं दशाओं में गुजर रहे हों। एक ही चरित्र नई नई दशाओं में पड़कर इस तरह स्वाभाविक रूप में हमारे सामने आता है, कि हमको उसमें लेश-मात्र भी असंगति नहीं मालूम होती। इसमें सन्देह नहीं कि Interpretation की कला में उनका कोई सानी नहीं है। इस उपन्यास में दो हजार से ऊपर पृष्ठ हैं। इसमें सैकड़ों ही गौण पात्र आये हैं, पर हरेक अपना अलग व्यक्तित्व रखते हैं। लेखक उनकी मनोवृत्तियों और मनोभावों की तह में जाकर ऐसे-ऐसे चमकते रत्न निकाल लाता है, कि हम मुग्ध भी हो जाते हैं और चकित भी। आपने क्रिस्टोफर के मुख से एक जगह साहित्य के विषय में ये विचार प्रकट किये हैं-

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