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साहित्य का उद्देश्य


शौक है, केवल व्यसन, जो मनुष्य अपनी बेकारी का समय काटने के लिए किया करता है । यह केवल मनोरजन है, दिमाग की थकन मिटाने के लिए । जीवन की मुख्य वस्तु कुछ और है; मगर सच्चे कलाकार की कला ही उसका जीवन है । इसी मे वह अपनी सम्पूर्ण श्रात्मा से मरता है, लिपटता है । अभाव की उत्तेजना के बगैर कला मे तीव्रता कहाँ से आयेगी। व्यसन खिलौने बना सकता है । मूर्तियो का निर्माण करना उसी कलाकार का काम है,जिसकी सम्पूर्ण आत्मा उसके काम मे हो ।

साकेतिकता ( Suggestiveness) कला की जान समझी जाती है और उसका सदुपयोग किया जाय, तो उससे कला अधिक मर्मग्राही हो जाती है । पाठक यह नही चाहता कि जो बाते वह खुद आसानी से कल्पना कर सकता है, वह उसे बताई जाये, लेकिन रोमे रोलॉ की कला सब कुछ स्पष्ट करती चलती है। हाँ, उसका स्पष्टीकरण इस दरजे का होता है, कि पाठक को उसमे भी विचार और बुद्धि से काम लेने का काफी अवसर मिल जाता है । वह पाठको के सामने पहेलियाँ नहीं रखना चाहता । उसकी कला का उद्देश्य मनोवृत्तियों को समझना है । जैसा उसने खुद समझा है, उसे वह पाठक के सम्मुख रख देता है और पाठक को तुरन्त यह मालूम हो जाता है, कि लेखक ने उसका समय नष्ट नहीं किया।

और बीच-बीच मे जीवन और समाज और कला और आत्मा और अनेक विषयो पर रोमे रोला जो भावनाएँ प्रकट करता है, उन पर जो प्रकाश डालता है, वह तो अद्भुत है, अनुपम है । हम उन की सूक्तियो को पढते है, तो विचारो मे डूब जाते है, अपने को भूल जाते हैं। और यह साहित्य का सबसे बड़ा आनन्द है । अगर यह सूक्तियाँ जमा की जाय, तो अच्छी खासी किताब बन सकती है । उनमे अनुभव का ऐसा गहरा रहस्य भरा हुआ है कि हमे लेखक की गहरी सूझ और विशाल अनुभवशीलता पर आश्चर्य होता है। इन सूक्तियो का उद्देश्य केवल अपना रचना-कौशल दिलाना नहीं है । वे मनोरहस्यो की