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साहित्य का उद्देश्य

पन्थ की विजय उसके प्रचारको के आदर्श-जीवन पर ही निर्भर होती है। अयोग्य व्यक्तियो के हाथों मे ऊँचे-से-ऊँचा उद्देश्य भी निंद्य हो सकता है। मुझे विश्वास है, आप अपने को अयोग्य न बनने देंगे।

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दक्षिण-भारत हिन्दी-प्रचार सभा, मद्रास के चतुर्थ उपाधिवितरणोत्सव के अवसर पर, २६ दिसम्बर, १९३४ ई० को दिया गया दीक्षान्त भाषण ।