और उर्दूवालो को हिन्दी लिपि सिखाई जा सकती है। लिखने के विषय मे यह प्रश्न इतना सरल नहीं है । उर्दू मे स्वर आदि के ऐब होने पर भी उसमे गति का एक ऐसा गुण है कि उर्दू जाननेवाले उसे नहीं छोड़ सकते और जिन लोगो का इतिहास और सस्कृति और गौरव उर्दू लिपि मे सुरक्षित है, उनसे मौजूदा हालत मे उसके छोडने की आशा भी नही की जा सकती। उद्दॉ लोग हिन्दी जितनी आसानी से सीख सकते है, इसका लाजिम नतीजा यह होगा कि ज्यादातर लोग लिपि सीख जायेंगे और राष्ट्रभाषा का प्रचार दिन-दिन बढता जायगा। लिपि का फैसला समय करेगा। जो न्यादा जानदार है, वह आगे आयेगी। दूसरी पीछे रह जायेगी। लिपि के भेद का विषय छेडना घोड़े के आगे गाड़ी को रखना होगा। हमे इस शर्त को मानकर चलना है कि हिन्दी और उर्दू दोनो ही राष्ट्र-लिपियों है और हमे अख्तियार है, हम चाहे जिस लिपि मे उसका व्यवहार करे । हमारी सुविधा, हमारी मनोवृत्ति, और हमारे संस्कार इसका फैसला करेगे ।*
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- बम्बई के 'राष्ट्र-भाषा-सम्मेलन' मे स्वागताध्यक्ष की हैसियत से
२७-१०-३४ को दिया गया भाषण ।