सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:साहित्य का उद्देश्य.djvu/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८८
साहित्य का उद्देश्य


कि अगर जनता मे प्रकाश ले जाना है तो उसके लिए हिन्दी भाषा ही अकेला साधन है, और गुरुकुलो ने हिन्दी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाकर अपने भाषा-प्रेम को ओर मी सिद्ध कर दिया है।

सज्जनो, मैं यहाँ हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और विकास की कथा नहीं कहना चाहता, वह सारी कथा भाषा-विज्ञान की पोथियों मे लिखी हुई है। हमारे लिए इतना ही जानना काफी है कि आज हिन्दुस्तान के पन्द्रह-सोलह करोड लोगो के सन्य व्यवहार और साहित्य की यही भाषा है। हॉ, वह लिखी जाती है दो लिपियों मे ओर उसी एतबार से हम उसे हिन्दी या उर्दू कहते है। पर है वह एक ही। बोलचाल मे तो उसमे बहुत कम फर्क है, हाँ लिखने मे वह फर्क बढ जाता है। मगर उस तरह का फर्क सिर्फ हिन्दी मे ही नही, गुजराती, बॅगला और मराठी वगैरह भाषाओ मे भी कमोबेश वैसा ही फर्क पाया जाता है । भाषा के विकास मे हमारी संस्कृति की छाप होती है, और जहाँ संस्कृति मे भेद होगा वहाँ भाषा मे भेद होना स्वाभाविक है। जिस भापा का हम और आप व्यवहार कर रहे है, यह देहली प्रात की भाषा है । उसी तरह जैसे ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली, भोजपुरी और मारवाड़ी आदि भाषाएँ अलग-अलग क्षेत्रो मे बोली जाती है और सभी साहित्यिक भाषा रह चुकी है । बोली का परिमार्जित रूप ही भाषा है। सबसे ज्यादा प्रसार तो ब्रजभाषा का है क्योकि यह अागरा प्रात के बडे हिस्से को ही नही, सारे बुन्देलखण्ड की बोलचाल की भाषा है। अवधी अवध प्रात की भाषा है । भोजपुरी प्रान्त के पूर्वी जिलो मे बोली जाती है, और मैथिली बिहार प्रात के कई जिलो मे । ब्रजभाषा मे जो साहित्य रचा गया है, वह हिन्दी के पद्य-साहित्य का गौरव है । अववी का प्रमुख अथ तुलसीकृत रामायण और मलिक मुहम्मद जायसी का रचा हुआ पद्मावत है। मैथिली मे विद्यापति की रचनाएँ ही मशहूर है । मगर साहित्य मे आम तौर पर मैथिल का व्यवहार कम हुआ । साहित्य मे तो अवधी और ब्रजभाषा का व्यवहार होता था । हिन्दी के विकास के पहले ब्रजभाषा ही हमारी