हिन्दी में उपयोगी ग्रन्थ लिखकर लोग लाभ न उठावें तो हम यही कहेंगे कि हिन्दी के दुर्भाग्य की चिकित्सा ही नहीं हो सकती। यह बिलकुल ही असाध्य हो गया है। ईश्वर करे, हमारी यह सम्भावना गलत निकले।
[जनवरी, १९०८
१—हे विराट् स्वरूपिन् समाचारपत्र! आप सर्वान्तर्य्यामी साक्षात्ना रायण हैं। वृत्तपत्र, वर्त्तमानपत्र, समाचार-पत्र, गैजट, अखबार आदि आपके अनेक नाम और रूप हैं। अतः—"अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे"—आपका प्रणाम।
२—पत्र-व्यवहार अथवा चिट्ठी-पत्री आपके पादस्थान में हैं। आप अपने विराट् पाद प्रहार से उसका मर्दन किया करते हैं; अथवा रद्दी कागजों की टोकरी में फेंका करते हैं। पत्र-व्यवहार करनेवालों, या चिट्ठी-पत्री लिखने वालों का उत्तर देना या न देना, आपके बाद ही की कृपा या अनकृपा पर अवलम्बित रहता है।
३—चुटकुले और हँसी-ठट्ठे की बातें आपके जंघास्थान में हैं। क्यों? इसे आप खुद समझ जाइए।
४—समाचार, नये नये समाचार, विचित्र समाचार और स्फुट समाचार आपके उदरस्थान में है। इन्हीं से आपका प्रकाण्ड, प्रलम्ब और प्रसूत पेट अकसर भरा रहता है। यदि और कुछ भी न हो तो भी आपका विराट् रूप इन्हीं के सहारे थँमा रहता है।
५—किसी तरह रुपया कमाने के लिये किताबें और दवाइयाँ बेचने, घड़ियाँ मरम्मत करने और ऐजन्सी इत्यादि खोलने की युक्तियाँ निकालते रहना आपके हृदय-स्थान में है।