पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/१२३

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अमेरिका के अख़बार

पुरुषों की तसवीर वाले कार्ड मुझसे माँगने लगा मैंने चार पाँच कोड़ी कार्ड दिखा दिये। इनमें से साड़ी पहने हुये पारसी स्त्री की तसवीर-वाला एक कार्ड उसने पसन्द किया और उसे एक घंटे के लिये माँगा। मैंने पूछा कि इसे क्या करोगे? इस पर उसने कहा—दफ़्तर के कुछ लड़कों से बाजी लगी है। वे कहते हैं कि पारसी स्त्रियाँ कमीज और पतलून पहनती हैं और मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं है।' पौन घंटे से भी कम समय में वह पोस्टकार्ड लेकर लौट आया। उसके चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी। मैं समझ गया कि वह बाजी जीत गया। उसने पन्द्रह रुपये का एक बिल दिखलाया और कहा कि यही मैंने जीता है। इसके बाद धन्यवाद देकर वह चला गया। इस घटना को मैं भूल गया था। पर कुछ ही घंटों में मेरे एक मित्र ने एक अखबार के एक लेख की तरफ मेरा ध्यान आकृष्ट किया। उसमें लिखा था कि इस शहर में पारसी-जाति की एक बागी औरत आई है। इसके सिवा जो तसवीर मैंने उस सम्वाददाता को दी थी उसकी खूब लम्बी-चौड़ी नकल भी उसमें छपी थी। उस तसवीर के नीचे लिखा हुआ था कि हिन्हुस्तान से आई हुई बागी औरत का यह अन्तिम फोटोग्राफ है।

पर अमेरिकन लोग ऐसी धोखेबाजी में कैसे फँस जाते हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि अमेरिका के साधारण जन कुछ बड़े बुद्धिमान् या विद्वान् नहीं होते। उनकी शिक्षा केवल प्रारम्भिक होती है। इसके सिवा अखबारों को वे मन बहलाने की सामग्री समझते हैं। अखबारों में जो लेख आश्चर्यजनक व कौतूहलवर्द्धक होते हैं केवल उन्हीं को वे लोग पढ़ते हैं, और को नहीं। उनकी स्मरणशक्ति भी बहुत कमजोर होती है। उन्हें यह भी याद नहीं रहता कि अमुक चित्र पहले छप चुका है या नहीं। अखबार वाले इस कमजोरी से लाभ उठाते हैं। किसी मनुष्य, दृश्य या दुर्घटना के जो चित्र पहले छप चुके हैं उन्हीं