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साहित्य-सीकर

खर्च करके उन्हें इसमें रक्खा। पुस्तकालय के लिये उन्होंने एक अच्छी इमारत भी बनवा दी। उसमें विशेष करके अरबी फारसी ही की पुस्तकें अधिक हैं। ये पुस्तकें बड़े ही महत्व की हैं; कोई कोई तो अनमोल और दुष्प्राप्य भी कही जा सकती हैं। उनमें से कितनी ही ऐसी हैं जो देद्दली के बादशाहों की लिखाई हुई हैं। अरब, फारिस और तुर्किस्तान तक के नामी नामी लेखकों की वे लिखी हुई हैं। लाखों रुपये उनके लिखने में खर्च हुए हैं।

पुस्तकें अनेक विषयों की है। इतिहास, दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, साहित्य, वेदान्त, आयुर्वेद आदि कोई विषय ऐसा नहीं जिस पर अनेक अनेक पुस्तकें न हों। पर हैं वे सब मुसलमानों ही की रची और लिखी हुई। जिनका सम्बन्ध धर्म से है वे सब की सब प्रायः मुसलमानी ही धर्म की हैं। डाक्टर डेनिसन रास ने इस पुस्तकालय की पुस्तकों की एक बहुत बड़ी सूची प्रकाशित की है। उससे इस पुस्तकालय के अनमोल रत्नों का ज्ञान सर्व साधारण को होने में बहुत सुभीता हो गया है। इस पुस्तकालय में हज़ारों अलभ्य ग्रन्थ-रत्न ही नहीं, किन्तु कितने ही पुराने ग्रन्थकारों के हाथ से लिखी हुई, उनके ग्रन्थों की असल कापियाँ, भी हैं। उनमें उन्हीं के हाथ से किये गये संशोधन, परिशोधन, टिप्पणियाँ और काट-छाँट, जैसे के तैसे, देखने को मिलते हैं। अरब में जब से विद्या-दीपक की ज्योति जली तब से जितने उत्तमोत्तम ग्रन्थ प्रकाशित हुये उनमें से अधिकांश की कापियाँ इस पुस्तकागार में संगृहीत हैं। इस पुस्तकागार को देख लिया मानो मुसलमानों के विद्या-विकाश का मूर्त्तिमान रूप देख लिया।

इसमें शाहनामा की एक कापी है। उसे काबुल और काश्मीर के गवर्नर, अली मरदान खाँ, ने शाहजहाँ बादशाह को नजर किया था। उसकी लिपि बड़ी ही सुन्दर है। हाशिये पर सुनहरा काम है। ९४२