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साहित्य-सीकर

हुई है। हुमायूँ के भाई मिर्जा कामरान के दीवान की भी एक कापी दर्शनीय है। यह एक नामी लेखक की लिखी हुई है। जहाँगीर और शाहेजहाँ के दस्तखतों के सिवा और भी कितने ही बड़े-बड़े अमीरों के दस्तखत इस कापी पर हैं।

इस पुस्तकालय में कुछ पुस्तकें बहुत पुरानी हैं। ६०० हिजरी तक की पुस्तकें इसमें हैं। जहरवी नामक एक अरब-निवासी हकीम की पुस्तक, ५८४ हिज़री की लिखी हुई, यहाँ है। यह शल्य-चिकित्सा अर्थात् सर्जरी (Surgery) पर है। इस पुस्तक में चीर-फाड़ के शस्त्रों के चित्र भी हैं, जिनमें से कितने ही शस्त्र आजकल के डाक्टरी शस्त्रों से मिलते-जुलते हैं। कुछ पुरानी पुस्तकें ऐसी भी हैं जिनमें औषधियों और पशुओं के रंगीन चित्र भी हैं।

मुहम्मद साहब के जीवन-चरित और कुरान शरीफ़ के इतिहास से संबन्ध रखनेवाली भी कितनी ही पुस्तकें इस संग्रहालय में हैं। इतिहास और नामी-नामी पुरुषों के जीवनचरित तो न मालूम कितने होंगे।

जहाँ तक हम जानते हैं, भारत में, एक भी विद्याव्यसनी हिन्दू ने हिन्दुओं की बनाई हुई प्राचीन पुस्तकों का इतना बड़ा संग्रह अकेले ही नहीं किया। संग्रह करके सर्वसाधारण के लाभ के लिए उन्हें पुस्तकालय में रखना तो दूर की बात है।

[अगस्त, १९१४



२०—मौलिकता का मूल्य

कुछ समय से, हिन्दी साहित्य में; मौलिक रचना का महत्व खूब गाया जा रहा है। ऐसी रचनाओं की कमी ही नहीं; प्रायः अभाव ही सा बताया जा रहा और ज़ोर दिया जा रहा है कि सामर्थ्य रखनेवाले लेखकों को मौलिक ही पुस्तकों की रचना करनी चाहिये। इस पर प्रश्न हो सकता है कि "मौलिक" विशेषण का अर्थ क्या है? कोशकार कहते