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साहित्य-सीकर

अनविन कम्पनी के लिए ए॰ रगोजिन साहब ने जो भारतवर्ष का एक प्राचीन इतिहास लिखा है उसके एक अंश का अवतरण मात्र है।

भारत में व्यापार करने वाले योरप के गोरे व्यापारियों की यह पहली ही कम्पनी न थी। पोर्चुग़ीज लोग यहाँ बहुत पहले से—जब से वास्कोडिगामा ने १४९८ ईसवी में इस देश की भूमि पर कदम रक्खा—व्यापार में लगे थे। विदेशी व्यापारियों में ये अकेले ही थे और खूब माल-माल हो रहे थे। अँगरेज ब्यापारियों ने देखा कि ये लोग करोड़ों रुपये अपने देश ढोये लिये जा रहे हैं; चलो हम भी इन्हीं की तरह भारत में व्यापार करें और जो मुनाफा इन लोगों को हो रहा है उसका कुछ अंश हम भी लें। पोर्चुगीजों का व्यापार कोई सौ वर्ष तक बिना किसी विघ्न बाधा के भारत में जारी रहा। इसमें कुछ सन्देह नहीं कि वे लोग एक प्रान्त के बाद दूसरे प्रान्त को अपनी जमींदारी में शामिल करके पूरे मुल्क को अपने कब्जे में कर लेने का इरादा रखते थे! वे लोग अपने इस इरादे को कार्य में परिणत कर रहे थे कि ईस्ट-इंडिया-कम्पनी ने भारत में पदार्पण किया। अँगरेज व्यापारी पोर्चुगीज लोगों से किसी बात में कम न थे। उन्होंने बड़ी दृढ़ता से पोर्चुगीजों का सामना किया। उनके साथ चढ़ा-ऊपरी करने में अँगरेजों ने बड़ी सरगमी दिखाई। फल यह हुआ कि पोर्चुगीज लोगों का प्रभुत्व धीरे-धीरे कम हो चला। उनकी आमदनी के द्वार क्रम क्रम से बन्द होने लगे! यहाँ तक कि १६६१ ईसवी में उन लोगों ने अपनी बची-बचाई एकमात्र जमींदारी इंगलिस्तान के राजा को दे डाली। उस समय केवल बम्बई और उसके आस पास का भूभाग उन लोगों के कब्जे में था। पूर्वोक्त सन् में पोर्चुगल की राजकुमारी कैथराइन का विवाह इंगलैंड के राजा दूसरे चार्ल्स के साथ हुआ। तब बम्बई की जमींदारी को अपने काम की न समझकर पोर्चुगल के राजा ने