वारन हेस्टिंग्ज ईस्ट-इडिया-कम्पनी के पहले गवर्नर-जनरल हुये। उन्होंने सब से पहले भारत-वासियों की रीति, रस्म और स्वभाव आदि का ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश की। उस समय भारतवासी बोझा ढोने वाले पशुओं के समान समझे जाते थे। उनके देश में कदम रखना सिर्फ रुपया कमाने के लिये ही जरूरी समझा जाता था। खैर। वारन हेस्टिंग्ज ने कहा कि जिन लोगों से और जिन लोगों के देश से हमें इतना लाभ है उन पर, जहाँ तक हमें कोई हानि न पहुँचे, अच्छी तरह शासन करना चाहिये। परन्तु सुशासन की योग्यता आने के लिये भारतवासियों के इतिहास, विश्वास, धर्म, साहित्य आदि का ज्ञान होना जरूरी समझा गया। अतएव वारन हेस्टिंग्ज ने अपने अधीन कर्मचारियों का ध्यान इस ओर दिलाया और सर विलियम जोन्स ने पहले पहल संस्कृत सीखना आरम्भ किया।
सर विलियम बंगाल की 'सुप्रीम कोर्ट' के जज थे। उन्होने १७८४ ईसवी में बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की और हम लोगों के धर्म-शास्त्र का अध्ययन आरम्भ किया। क्योंकि बिना
धर्म-शास्त्र के ज्ञान के भारतवासियों के मुकद्दमों का फैसला करने में अंगरेज जजों को बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ता था और दत्तक आदि लेने का विषय उपस्थित होने पर वारन वेस्टिंग्ज को पण्डितों की शरण लेनी पड़ती थी। सर विलियम जोन्स ने किस तरह संस्कृत सीखी, इस पर एक लेख पहले ही लिखा जा चुका है। इस काम में उन्हें सैकड़ों विघ्न बाधायें हुई। पर सब को पार करके सर विलियम ने मतलब भर के लिये संस्कृत का ज्ञान प्राप्त ही कर लिया। अरबी और फारसी तो वे इँगलैंड ही से पढ़कर आये थे। संस्कृत उन्होंने यहाँ पढ़ी। पूर्वी देशों की भाषाओं में से यही तीन भाषाएँ, साहित्य के नाते, उच्च और बड़े काम की समझी जाती हैं। सर विलियम ने पहले मनुस्मृति का अनुवाद किया। यह अनुवाद