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पृष्ठ:साहित्य सीकर.djvu/९२

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साहित्य-सीकर

के टाइटिल पेज पर छाप देते थे। परन्तु यदि फीस देकर किसी पुस्तक की बाकायदा रजिस्टरी न कराई गई हो तो इस तरह की धककियाँ और इस तरह की सूचनायें व्यर्थ थीं। इनसे कुछ भी लाभ न था। जिस पुस्तक की रजिस्ट्री न हुई हो उसे जिसका जी चाहे छाप सकता था।

अब यह कानून बदल गया। रजिस्ट्री कराने की कोई जरूरत नहीं रही टाइटिल पेज के अनुसार जो जिस पुस्तक का लेखक है उसी का उस पर पूरा हक समझा जायगा। जब तक वह जिन्दा है तभी तक नहीं, उसके मरने के ५० वर्ष बाद तक भी कोई उसकी पुस्तक को, किसी रूप में, न प्रकाशित कर सकेगा। उसकी अथवा उसके वारिसो की रजामन्दी ही से वह ऐसी पुस्तक को छपा कर बेच सकेगा।

इस नये कानून से एक और भी सुभीते की बात हो गई है। विलायत की छपी हुई किसी पुस्तक को यदि इस देश में कोई छपाकर प्रकाशित करना चाहे तो खुशी से कर सकता है। विलायती ऐक्ट की दफा १४ देखिये। विलायती ग्रन्थकार या उनके वारिस सिर्फ इतना कर सकते हैं कि सरकारी अफसरों से कह कर उस पुस्तक की कापियों का विलायत जाना रोक दे सकते हैं। इसी तरह भारत में छपी हुई पुस्तके वे लोग वहाँ छाप सकते हैं और भारतीय ग्रन्थकार या उनके वारिस उन पुस्तकों को वहाँ आने से रोक सकते हैं। यह कानून हम लोगों के बड़े काम का है। क्योंकि हमी को विलायती पुस्तकें छापने या उनका अनुवाद करने की अधिक जरूरत रहती है।

इस नये कानून में एक बात बे-सुभीते की भी हैं। गवर्नमेंट हर साल सैकड़ों रिपोर्टे और सैकड़ों तरह की पुस्तकें प्रकाशित करती है। उनमें से कितनी ही पुस्तकें प्रजा के बड़े काम की होती हैं। विलायती ऐक्ट की दफा १८ के मुताबिक उनका कापी-राइट गवर्नमेंट ने अपने ही हाथ में रखा है। गवर्नमेंट की प्रकाशित किसी पुस्तक के पहली