पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२२६

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इक्कीसवां अध्याय १६५ २८--धानी यह काफी अंग का राग है। इसमें गान्धार-निपाद कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। अरोह में ऋषभ-धैवत वर्जित हैं। अवरोह में ऋषभ का अल्प प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार इसे औडव-पाडव करके गाते हैं । अथवा कहिये कि भीमपलासी में से धैवत स्वर को निकाल कर यह राग गाया जाता है | वादी स्वर गान्धार व संवादी निषाद है । गान समय सायंकाल है । आरोहः नि सा ग म प नि सां और अवरोह सां नि प म गरे सा। मुख्यांगः-ग म नि पग सा है। अलाप-- नि सा ग म प, म ग रे सा, नि सा, पनि सा, नि पम पनि सा, ग म प, नि प, म प, नि प, ग म प, ग म ग रे सा। ग सा, ग म प, नि प, सां नि प म प, ग म प, नि, सां रें सां नि प म प ग म ग, प ग नि प म ग, सा ग म प नि म प ग, प ग, म ग रे सा । ग म प, नि प, सां रें सां नि प, प नि सां ग रे सां, नि प म प ग, सा ग म प ग, पनि प ग, म पनि प ग, सा ग म ग रे सा । ताने- १- नि सा म ग रे सा, नि सा ग म प प म ग रे सा, नि सा ग म प नि प म ग म ग ग रेसा, नि सा ग म प नि सां नि प म ग ग रे सा, नि सा ग म प नि सां गं रे सां नि प ग स ग ग रे सा। २–ग ग रे सा, प प म प ग ग रे सा, नि नि प प म प ग ग रे सा, सां सां नि प म प ग ग रे सा, गं ग रे सा रे रे सां नि सां सां नि प, नि नि प म, प प म ग, ग ग रे सा। ३-सा ग ग, ग म म, म य प. प नि नि, नि सां सां, नि सा ग, सा ग म, ग म प. म पनि, प नि सां, नि सा नि सा ग, सा ग सा ग म. ग म ग म प, म प म पनि प नि प नि सां, सां रें सां नि प म गम, ग ग रे सा नि सा । २६--नायकी यह काफी अङ्ग का एक प्रकार का कान्हरा है। इसमें समस्त स्वर काफी के ही लगते हैं परन्तु धैवत वर्जित है। इस प्रकार इममें गान्धार, निषाद कोमल तथा शेष शुद्ध स्वर हैं अतः जाति पाडव-पाडव है। कभी-कभी कोई गायक इसकी अवरोही में केवल कोमल निपाद के साथ ( जैसे 'ध नि प') धैवत का भी अल्प प्रयोग कर लेते हैं और इसे पाडब-संपूर्ण करके गाते हैं। चूंकि इसे दरबारी अङ्ग गाते हैं अतः धैवत लगने का डर ही रहता है। संक्षेप में इसके पूर्वाङ्ग में सूहा और उत्तराङ्ग में सारङ्ग मिलाकर गाते हैं। कुछ लोग वादी स्वर मध्यम और कुछ पञ्चम को मानते हैं । संवादी षड्ज है। गायन समय मध्य रात्रि है। आरोही-सा ग म प नि प सां और अवरोही सां नि प म प ग म रे सा है। मुख्यांगः- म नि प नि म प ग म रे सा है।