पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/६८

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आठवाँ अध्याय (१) ध नि सा ग म ध नि सां । ध नि सां नि छु म ग सा (२) नि सा ग सा ग म ध म ध नि सां ध म ग सा -13P सा गम ग म ध नि सां ध नि ध म ग सा (४) ध नि सा ग घ धु नि सां ध नि धु म ग सा (५) ध नि सा ग म ध नि सां गं मं सां नि ध म ग सा (६) ध नि सा ग म धु नि सां! मं गं सां नि धु म ग सा इनमें भी नं० १-५ और ६ में पहले आठ और अन्त के चार स्वर समान ही हैं। शेष चार स्वरों में ही उलट-पलट है। इसी प्रकार नं० ३ और ४ में पहले पांच और अन्त के आठ स्वर समान हैं। यहां यह बात ध्यान देने की है कि प्रत्येक तान का प्रारंभ धैवत से किया गया है और समाप्ति में पहिली दस तानों में निसा था, जब कि अगली ६ तानों की समाप्ति गसा पर है। अब हम कुछ तानें बनाने का क्रम लिखते हैं। चूंकि मालकोश में सागमध और नि पांच ही स्वर हैं, अतएव हम क्रम से ध. नि, सा, ग, म, ध, नि, सां, गं, और मं स्वर से सोलह-सोलह स्वरों की ऐसी तानें प्रारम्भ करेंगे, जिनमें कुछ की समाप्ति निसा' पर और कुछ की 'गसा' पर होगी। इस प्रकार की मन्द्र धैवत से प्रारम्भ होने वाली ताने, आप ऊपर देख चुके हैं। अब कुछ तानें ऐसी देखिये जिनका प्रारम्भ मन्द्र के निषाद से है। इनमें कुछ की समाप्ति 'निसा' पर और कुछ को 'गसा' पर करेंगे । (१) नि सा धु नि सां गं सां नि ध म ग सा नि मा (२) नि सा ग म ध नि सां मं सां नि ध म म सा नि सा