पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नवाँ अध्याय मसीत-खानी गतें बनाने का क्रम पिछले अध्यायों में आप सितार पर बजने वाली समस्त बातों को अर्थात् बजाने का क्रम रागालाप और तानें बनाने का ढंग समझ चुके हैं । अब आपको गतें (गतियाँ) बनाने का ढंग और सिखाते हैं । जैसा कि पहिले कहा जा चुका है, इन गतों के तीन प्रमुख घराने हैं। इन्हें क्रम से 'सैनवंशीय' 'मसीतखानी' और 'रजाखानी' कहते हैं। वैसे तो यह गते विशेष रूप से तीन ताल में ही बजाई जाती हैं, परन्तु कुछ विद्वान इन्हें आड़ाचारताल, एकताल, दीपचन्दी और झप आदि में भी बजाते हैं । अभ्याम हो जाने पर विपम मात्राओं को तालों में (जैसे १५-१३-११ आदि मात्राओं में ) भी खूब बजाते हैं। यही नहीं, जो यादक इस पुस्तक के आधार से अभ्यास करेंगे, वे बीस-पच्चीस और तीस मिनट तक भी बड़ी सुगमता से साढ़े-नौ, साढ़े दस अथवा किसी भी मात्रा की ताल में गत-तोड़े, ताने और तीये आदि खूब बजा सकेंगे । अभ्यास करने के लिये हम आपको पहिले तीन ताल की ही गते बनाना सिखायेंगे। विलंबित लय की गतों में मसीत खानी गते प्रधान हैं । सैनवंशीय गतों में विलंबित, मध्य, और द्रुत तीनों प्रकार की गतें आती हैं । अतः पहिले हम मसीतखानी गत निर्माण करने का क्रम लेंगे। मसीतखानी गत के जन्म का कारण सैनवंशीय गतों की कठिनता ही प्रतीत होती है । इनमें 'दिड दा दिड दा डा दा दा डा कुल आठ बोल हैं । जब इन बोलों २ को दो बार बजा दिया जाता है तो तीनताल की सोलह मात्रा पूरी हो जाती हैं । इन सोलह मात्राओं में पहिली दिड़ सदैव बारहवीं मात्रा से प्रारम्भ की जाती है । जैसे- दिड दा दिड दा ड़ा दा दा डा दिड दा दिड दा डा दा दा ड़ा। ३ ६ जैसा कि आप देखेंगे कि दिड दा दिड दा डा के बाद जो दा दा डा का पहिला दा है, उस पर पहिली गिनती अर्थात् सम आता है । चूँकि तीन ताल में चार-चार मात्रा के खंड हैं, अतः इस गत को निम्न प्रकार ताल-बद्ध किया जायेगाः-- w 8 ४ ५ ५ 5 ५ ३ x २ O दा दिड दा डा दा दा ड़ा दिड दा दिड दा डा दा दा ड़ा, दिड w २ ३ 5 अब आप भी इसे तीन चार बार दिड दा श्रादि बोलते हुए ताल लगाने का अभ्यास कर लीजिये, यदि हो सके तो प्रत्येक मात्रा पर पैर के अंगूठे को भी हिलाइये।