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पृष्ठ:सिद्धांत और अध्ययन.djvu/१४०

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काव्य' के वयं----Zङ्गार १०५ विभ्रम हाव में प्रेम की विह्वलता के कारण उलटा व्यवहार होने लगता है । बहेड़ी पास रक्खी है लेकिन नायिका मथानी में पानी ही डालती है और उलटी रई से उसे बिलोने लगती है । यह व्यवहार' नायिका के प्रेम का सूचक होने के कारण एक प्रकार का अनुभाव ही होगा किन्तु नायक के लिए इस प्रेम की सूचना उद्दीपन का काम करेगी। वियोगश्शार : वियोग में मिलन का प्रभाव रहता है। (क) यह अभाव मिलने के पूर्व का अभाव हो सकता है जिसे हम अयोग भी कह सकते हैं । इसको ही पूर्वानुराग कहते हैं, यह (१) श्रवण-दर्शन से जिसमें केवल गुण सुनने से, जैसे पद्मावत में सुए के मुख से पद्मावती की प्रशंसा सुनकर रत्नसेन को हुआ था, (२) स्वप्न-दर्शन से, जैसे ऊषा को हुना था, (३) चित्र-दर्शन से, जैसे ऊपा को चित्रलेखा ने अनिरुद्ध का चित्र बनाकर दिखाया था, दमयन्ती को हंस ने नल का चित्र दिखाया था और (४) प्रत्यक्ष दर्शन से, जैसा श्रीरामचन्द्र जी और सीता को पुष्प-वाटिका में हुआ था, . होता है। (ख) मिलन के बीच में जो मिलन का प्रभाव रहता है उसे मान कहते हैं, यह अस्थाथी होता है । जो मान दम्पत्ति में से किसी एक पक्ष के दोष या अपराध से होता है उसे ईर्ष्या-मान कहते हैं और जो केवल वियोग का आनन्द लेने और संयोग के सुख को तीव्रता देने के लिए होता है उसे प्रणयमान कहते है । (ग) जो अभाव परदेश-गमन से मिलन पश्चात् होता है उसे प्रवास कहते हैं । मान में एक ही स्थान में रहते हुए मिलन का अभाव रहता है, प्रवास में एक पक्ष दूसरे स्थान में पहुँच जाता है यह (१) कार्यवश,जैसे कृष्णजी के मथुरा चले जाने से, (२) शापवश, जैसे मेघदूत के यज्ञ के सम्बन्ध में हुआ था और (३) भयवश भी होता है । जब वियोग पराकाष्टा तक पहुंच जाता है तब वह करुणात्मक कहलाता है । करुणात्मक का विभा- जन प्राधार-मात्र का है, प्रकार का नहीं। पूर्वानुराग और प्रवास दोनों ही करुणात्मक हो सकते हैं। साधारण करुणा और करुणात्मक वियोग में यही अन्तर है कि साधारण करणा में सदा के लिए वियोग होता है, मिलन की कोई आशा नहीं रहती है; करुणात्मक में मिलन की आशा रहती है। करुणात्मक में शृङ्गार का प्रकार होने के कारण रति का भाव लगा रहता है, करुणा में रति का अभाव हो जाता है। 'साकेत' में उर्मिला का विरह करुणात्मक वियोग का अच्छा उदाहरण है। उत्तररामचरित में राम का वियोग भी करुणात्मक है। उसको