का कौन रक्षक है ? चे जहां लेजायंगे, वहीं जायंगे।"
यह बात सुनकर बालक सन्तुष्ट होगया। अनाथिनी ने पहले बिचारा कि, 'सबेरे कहां जायँगे, किसके दरवाजे खड़े होंगे, क्या करेंगे?' अनन्तर हृदयभेदी चिन्ता दुःखभाराकान्त हृदय में स्थान न पाकर स्फुट स्वर में व्यक्त हुई,-
बालिका ने कहा,-" अहा ! चिता में कूद कर प्राण त्याग करती तो यह दुःख न भोगना पड़ता, और अनन्त काल के लिये सुख होता।"
बालक ने समझ कर धीरे से कहा,-"क्यों बहिन ! तुम इस तरह क्यों सोचती हौ ? अभी तो तुमने कहा है कि, 'दयावान जगदीश्वर हमलोगों के रक्षक हैं, तो क्या यह बात मिथ्या है ? जो ऐसा हो तो फिर एक चिता जलाओ और उसी में कूद कूद कर हमलोग अनन्त शान्ति को पावैं और पिता से मिलें । "
बालिका प्रबल शोक सम्बरण करके बोली,-" भाई ! ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए; जगदीश्वर अवश्य ही रक्षा करेंगे।"
बालक,- अच्छा तो अब न कुछ भय करूंगा, न कहूंगा! पर हमलोगों को आहार कौन देगा ?"
बालिका,-" भय क्या है ? जो सबको आहार देते हैं, वे हमलोगों को भी देगें! और कुछ उपाय न होने से भीख मांग कर मैं तुम्हें खिलाऊँगी।
बालक.- क्यों जीजी ! जैसे मेरे घर बहुत से भिक्षुक आया करते थे, वैसे ही तुम भी दूसरों के घर जाओगी! पर मैं तो अकेले न जाने दूंगा, मैं भी तुम्हारे संग चलंगा, किन्तु न जाने क्चों, मुझे बड़ी रुलाई आती है!"
बालक के वाक्य ने बालिका के गंभीरतम हदय में आघात किया । वह दोनों हाथ उठाकर दयामय ईश्वर को स्मरण करने लगी। धीरे धीरे निशादेवी अपना धूंघटपट खोल कर अन्तःपुर में प्रविष्ट हुई और प्रभात की प्रभा चारो ओर फैलने लगी। म्मशान में वहांके अधिवासी पशुपक्षियों की कलकलध्वनि सुनाई देने लगी।