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ईमा. 1. उपन्यास।। - - 4 (पुस्तअनाधिनी देखो ! नीचे की दलान में सब कोई बैठी है; @ तुम्हारी बे-सिर और की बातें सुनकर वे सब मन में क्या कहेंगी?" सरला, मैं तो कहूंहींगी,-क्या? 'बहू' ! कौन नहीं जानता कि भैया के आने पर तुम उनसे ब्याही जाओगी।" अनाथिनी,-" तुम्हारे जो मन में आवै सो कहो। सरला .! मैं देखती हूं कि बहू बनने का तुम्हें बड़ा चाव हैं !" सरला,-"जाओ, मैं न बोलंगी।" अनाथिनी,-"क्यों, सरला! खफा हुई क्या?" सरला,-"बहू'-मई ! तुम समझी नहीं ?' अनाथिनी,-" नहीं, मैं कुछ भी नहीं समझी, कहो न भई !" सरला,-" मैं तो तुम्हें 'बहू' पुकारती हूँ और तुम मेरा नाम लेती हो?" अनाथिनी,--" ओहो ! बीबीजी ( ननद ) कहूं क्या ? ऐं! वही तो देखती हूं!" सरला,--"अब तुम कुछ राह पर आई । मैं क्या कहती थी ? वहू !'--".. ___ अनोथिनी,--" बीबीजी ! मैं यह कहती हूं कि तुम्हें बहू बनने की बड़ी चाह है !" सरला,--" किसे साध नहीं होती ? अब तक तो कभी की मैं बहू हुई रहती, पर वैसी बहू नहीं हुई, सोई अच्छा हुआ। अनाथिनी,-"क्यों, अभी तक तुम्हारा ब्याह क्यों नहीं हुआ ?" सरला,--" प्रायः तीन मास हुए, बाबा एक बर खोज लाए थे, पर वे मुझे पसन्द नहीं थे, इसलिये उन्हें मैंने हवा खिलाई !" अनाथिनी,-"हवा खिलाई ? ऐ है ! वें कहां के बर थे ? उनका घर कहां है ? सरला,-"मेरे मामा के घर के पास उनका मकान है।" - अनाथिनी,-"तो जान पड़ता है कि वे तुम्हें अच्छी तरह जानते होंगे!" सरला,-"खूब अच्छी तरह !!!" अनाथिनी,-"तो फिर तुमने विवाह करना अस्वीकार क्यों किया ?" सरला,-"पसन्द नहीं हुआ, इसीसे अस्वीकार किया !!!"