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उपन्यास । हाल पूछा था, वे पुलिस के आदमी थे। जबसे उदासीन ने भूपेन्द्र को कापालिक के हाथ से मुक्त किया था, तबसे कापालिक फिर भूपेन्द्र के अनुसन्धान में था। - जबसे अनाथिनी का पक्ष लेकर हरिहरबाबू ने रामशंकर को उचित शिक्षा दी थी, तबसे वह हरिहरबाबू का जातशत्रु हो गया था। उसीने कापालिक से मिलकर भूपेन्द्र के सर्वनाश का पडयंत्र रचा था। इसमें यह मतलब था कि, 'भूपेन्द्र के मारे जानेसे हरिहर बाबू भी एक प्रकार मृतकला होजायंगे, तब अनाथिनी बस्तुतः अनाथिनी होजायगी! तप उसे मैं अपनी गणिका और सुरेन्द्र को दत्तकपुत्र बनाऊंगा।' बस इसी अभिप्राय से उस पतित ने यह जाल फैलाया था। ___ अभाग्यवश उसी जंगल से होकर भूपेन्द्रबाबू अपने घर जाते थे। मार्ग में रामशंकर और कापालिक ने उन्हें चीन्ह कर फिर पकड़ लिया, और असार संमार से शीघ्र पिदा करने के लिये, गंगा किनारे अभिचार रचा था। इस भयानक व्यापार को देखकर अनाधिनी का हृदय विदीर्ण, प्राण जीर्ण, मन संकीर्ण और देह शीर्ण होगया। वह व्यथित. अन्तःकरण से कापालिक के पास जाकर रोते रोते बिनीतभाव से कहने लगी.-"महाशय ! आपको तो नरबलि देनी है न? तो इन निर्दोष पुरुष को छोड़ कर इनकी जगह मुझे देवी के आगे बलि चढ़ा दीजिए। मांसलोलुप देवी कामिनी के कोमल तथा कमनीय और मीठे मांस से ज्यादे प्रसन्न होगी! इनके मरने से एक घर का चिराग बुझ जायगा,किन्तु मेरे पीछे कोई रोनेवाला नहीं हैं। इसलिये दया करके इन्हें छोड़ कर मेरा बध करिए ।” अनाथिनी महाविलाप-पूर्वक बारम्बार यही कहती और कापालिक तथा रामशङ्कर के चरणों में लोटती थी, पर किसी पाषाण हृदय ने उसकी बातों पर भ्र क्षेग भो नहीं किया! रामशङ्कर कालिक की आज्ञा का आसरा देख रहा था । होम समाप्त होने पर कापालिक ने भूपेन्द्र के बध और बलि की आज्ञा दी। - भूपेन्द्र ने कापालिक की बहुत बिनती करके अनाथिनी से अन्तिम समय की विदा लेने की अनुमति ली, और सकरुण तथा क्षीणस्वर से वे बोले,--