पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. २४ - - - .. श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। ध्वजाके साम्है सन्मुख करिके सूरदासजी सोये परि अंतःकरणमें यह जो श्री आचार्यजी महाप्रभु दर्शन देंयगे अब यह देह तो थकी ताते अब या देहसों श्रीनाथजीको दर्शन होय तो जानिये । परमभाग्यहै श्री गुसाईजी को नाम कृपासिंधुहै. भक्तनके मनोरथ पूर्णकर्ता हैं ऐसे विचारके। सूरदासजी श्री गुसाईजीको चितवन करतहैं और श्री गुसाईजी कैसे कृपासिंधुहैं जैसे... सूरदासजी वहाँ स्मरण करतहैं तैसे श्रीगुसाईजी इनको छिनहूं नाहिं भूलतहैं श्रीनाथजीको श्रृंगारः | हो तौ ता समय सूरदासजी मणिकोठामें ठाढे ठाडे कीर्तन करते सो तादिन श्रीगुसाईजी श्रीनाथ- जीको शृंगार करत हुते और सूरदासजीको कीर्तन करत न देख्यो तब श्रीगुसाईजीने पूछो जो || सूरदासजी नाहीं देखियत सो काहेते तब काहू वैष्णवने कह्यो जो महाराज सूरदाः || सजी तौ आज परासोलीकी ओरी जात देखें हैं तब श्रीगुसांईजीने जान्यो जो भगवत् ॥ इच्छाते अवसान समय है ताते. सूरदासजी परासोली गयेहैं तब श्रीगुसांईजीने. अपने सेवकन सों कह्यो जो पुष्टिमार्गको जहाज जात है जाको कछू लेनो होय सो लेउ और जो भगवद | इच्छाते राजभोग आरती पाछे रहत है तो मैंहूँ आवत हों पाछे श्रीगुसांईजी वेरवेर सूरदासजी । की खबरि मँगायो करें जो आवै सोई कहै जो महाराज सूरदासजी तो अचेत हैं कछू बोलत नाही ऐसे करत श्रीनाथनीके राजभोगको समय भयो सो राजभोग आरती करिके श्रीगुसांईजी गिरि- राजते नीचे उतरे सो आप परासोली पधारे भीतरके सेवक रासदासजी प्रभृत और कुंभनदासजी और श्रीगुसांईजीके सेवक गोविंद स्वामी चतुर्भुजदास प्रभृति और सब श्रीगुसांईजीके साथ आये| सो आवतही सूरदासजीसों श्रीगुसांईजीने पूछो जो सूरदासजी कैसे हो तव सूरदासजीने श्रीगुसाई जीको दंडवत करिके कह्यो जो महाराज आये हो महाराजकी बाट देखत हुतौ यह कहिके सूरदासजीने एक पद कह्यो सो पद ॥ राग सारंग-देखो देखो हरि जूको एक सुभाय।अति गंभीर उदार उदधिप्रभु जानिशिरोमणिराय राई जितनी सेवाको फल मानत मेरु समान ।समझि दास अपराध सिंधुसमबूंदनएको जाना॥२॥ बदनप्रसन्नकमलपदसन्मुख दीखतहीहऐसे ॥ऐसेविमुखड्डभयेकृपायामुखकीजवदेखौतवतैसे॥३॥ भक्तविरहकरतकरुणामयडोलतपाछेलागे ।। सूरदास ऐसे प्रभुको कत दीजै पीठ अभागे ॥४॥ यह पद सूरदासजीने कह्यो सो सुनिके श्रीगुसांईजी बहुत प्रसन्न भये और कह्यो जो ऐसे दैन्य प्रभु अपने सेवकनको दोहैं या दैन्यके पात्र एहीहैं तब वा बेर श्रीगुसांईजीके पास गडेहुते और चतुर्भुजदासह ठाढ़े हुते तव चतुर्भुजदासने कह्यो जोसूरदासजीने बहुत भगवत् यश वर्णन कियो परि श्रीआचार्यजी महाप्रभूनको वर्णन नाहीं कियो तब यह वचन सुनिके सूरदासजी बोले जो मैं तो सब श्रीआचार्यजी महाप्रभुन कोही यश वर्णन कियोहै कछू न्यारो देखू तो न्यारो करूं परि तेरे साथ कहतहों या भांति कहिके सूरदासजीने एक पद कह्यो सो पद॥ . . राग विहागरो-भरोसो दृढ़ इन चरणन केरोश्रिीवल्लभनख चंद छटा विनु सब जग मांझ अँधेरो. १ साधन और नहीं या कलिमें जासों होत निवेरो।सुरकहा कहे दुविधि आंधरो विनामोलकोचरो ॥ यह पद कह्यो पाछे सूरदासजीको मूर्छा आई. तब श्रीगुसांईजी कहें जो सूरदासजी चित्त की वृत्ति कहाँ है तब सूरदासजीने एक पद और कह्यो सो पद ॥. . राग विहागरो-चलि वहि वलि हो कुमरि राधिका नंदसुवन जासों रति मानी.॥ वे अति चतुर तुम चतुर शिरोमणि प्रीति करी कैसे होत है छानी ॥ १॥ वे जु धरत तन कनक पीतपट सो तो, सब -