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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/७३

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सेवासदन
 


हो गई। जानवर लेकर उसे लौटा दोगे तो क्या बात रह जायगी? यदि डिगबी साहब फेर भी लें तो यह उनके साथ कितना अन्याय है? वह बेचारे विलायत जानेके लिए तैयार बैठे है। उन्हें यह बात कितनी अखरेगी? नहीं, यह छोटी सी बात है, रुपये ले जाइये दे दीजिये, रुपया इन्हीं दिनों लिए जमा किया जाता है। मुझे इनकी कोई जरूरत नही है में सहर्ष दे रही हूं। यदि ऐसा ही है तो मेरे रूपये फेर दीजियेगा, ऋण समझकर लीजिये।

बात ही थी, पर जरा बदले हुए रूप में। शर्माजी ने प्रसन्न होकर कहा, हां, इस शर्तपर ले सकता हूँ, मासिक किस्त वाँवकर अदा करूँगा।

१५

प्राचीन ऋषियों ने इन्द्रियों का दमन करने के दो साधन बताये हैं-—एक राग दूसरा वैराग। पहला साधन अत्यन्त कठिन और दुस्साध्य है। लेकिन हमारे नागरिक समाज ने अपने मुख्य स्थानों पर मीनाबाजार सजाकर इसी कठिन मार्ग को ग्रहण किया है। उसने गृहस्थों को कीचड़ का कमल बताना चाहा है।

जीवनकी भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न वासनाओं का प्राबल्य रहता है। बचपन मिठाइयों का समय है, बुढ़ापा लोभ का, यौवन प्रेम और लालसाओं का समय है। इस अवस्था में मीनाबाजार की सैर मन में विप्लव मचा देती है। जो सुदृढ हैं, लज्जाशील वा भाव-शून्य वह सँभल जाते है। शेष फिसलते है और गिर पड़ते है।

शराब की दुकानों को हम बस्ती से दूर रखने का यत्न करते हैं, जुएखाने में भी हम घृणा करते है, लेकिन वेश्याओं की दुकानों को हम सुसज्जित कोठों पर चौक बाजारी में ठाट से सजाते है। यह पापोत्तेजना नहीं तो और क्या है?

बाजार की साधारण वस्तुओं में कितना आकर्षण है! हम उनपर लट्टू हो जाते है और कोई आवश्यकता न होनेपर भी उन्हें ले लेते है।