को काम में ला रहा है । वह इस होशियारी और चालाकी से यह किताब लिख रहा है कि उसे पढ़ कर राजपूतों का मन मुसलमानों और मराठों से फिर जाय। इस बात की इस वक्त हमें सख्त ज़रूरत है कर्नल; और वह अच्छे अंग्रेज़ की तरह यह काम निहायत होशियारी से कर रहा है।" "मैं समझ गया जनरल महोदय, आपका अभिप्राय यही है कि वह ऐसी किताब लिखे, कि जिसे पढ़ कर वे तीनों प्रबल जातियाँ भारत की स्वाधीनता के नाम पर परस्पर कभी न मिलने पाएँ ।" "बेशक, बेशक, हमारी यही मंशा हैं कर्नल, पर ये गधे हिन्दुस्तानी इस बात को नहीं समझते । अपनी तारीफें पढ़-पढ़ कर राजपूत राजा और जागीरदार सरदार उसे जी भर-भर कर नज़रें और रिश्वतें दे रहे हैं । मैंने उसे लिख दिया है कि उनका मन रखने को वह ये रिश्वतें और नज़राने ले सकता है । कम्पनी की सरकार को इसमें कोई उज्र नहीं है।" "उसे तो कम्पनी की सरकार से भी दाद मिलनी चाहिए जनरल महोदय।" "ज़रूर, मैंने गवर्नर-जनरल को सब बातें लिखी हैं। सच तो यह है कि उसकी क़लम और बुद्धि पर हम सब अंग्रेजों का भाग्य बंधा हुआ है । अब दो बातें हैं-एक तो यह कि हमें मध्य हिन्दुस्तान का सही नक्शा मिल जाय। जिसकी मदद से हम आने वाली मराठों की तीसरी लड़ाई को इस तरह जीत ल कि पेशवा की गद्दी का खात्मा ही हो जाय । दूसरे वह अपनी किताब लिख कर राजपूतों का मन मराठों से फेर दे । जिससे हम राजपूत राजाओं के साथ सिंधिया सरकार से ऊपर ही ऊपर पृथक् संधि कर लें। और उनका सम्बन्ध सिंधिया सरकार से विच्छिन्न करके उन्हें भी कम्पनी के साथ सब-सीडियरी संधि के जाल लपेट लें।" अब तक जयपुर, जोधपुर आदि रियासतें सिंधिया की सामन्त थीं, और दूसरे मराठा युद्ध के बाद सिंधिया और अंग्रेजों की जो संधि हुई थी, उसमें कम्पनी ने सिंधिया और राजपूतों के इस सम्बन्ध को स्वीकार किया १२६
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