पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१७९

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कराने में तो निर्दय अत्याचार करते ही थे । लगान की वसूली और दूसरे कर ग्रहण करने में भी वे ऐसे अत्याचार करते थे, जो रोमांचकारी होते थे। इसके अतिरिक्त सांसिए, हाबूड़े और कंजरों के छोटे-छोटे दल निर्भय गाँवों में घुस कर उन्हें लूट लेते, कत्ल कर देते और गाँवों में आग लगा देते थे। उनकी कोई दाद-फर्याद सरकारी अमलदार नहीं सुनते थे, इसी से कम्पनी के राज्य की वृद्धि के साथ-साथ इन खानाबदोश डाकुओं के संगठन भी दृढ़ होते जा रहे थे। इस समय दिल्ली, मेरठ, सहारनपुर का और उसके आस-पास पचास मील तक का इलाक़ा इन डकैतों की दया पर छोड़ा हुआ था।

११:

सेना का जाल इस समय पचास हजार से भी अधिक पिण्डारी छोटी-बड़ी टुकड़ियों में अनुशासन विहीन लूट-मार करते आतंक फैलाते फिर रहे थे । अंग्रेजों के लिए उनका दबाना असह्य था । वे उन्हें दबाने के बहाने अपनी सैन्य संग्रह करते जा रहे थे। पर वास्तव में यह सैन्य संग्रह दक्षिण से पेशवा के तख्त को उलटने के लिए थी। उधर पेशवा भी दबादब सेना संग्रह कर रहा था। कहा जाता है कि पिण्डारियों के दमन के लिए वह अंग्रेजों की मदद करने के लिए यह सैन्य संग्रह कर रहा है। वास्तव में दोनों ओर से कूटनीतिक चालें चली जा रही थीं। पेशवा समझ गया था कि अब नहीं तो फिर कभी नहीं। और अंग्रेज़ समझ रहे थे कि यही अन्तिम दाव है । अब उन्हें यह भय साफ़ दीख रहा था कि यदि ये दुर्मद पिण्डारी मराठा शक्ति से मिल गए तो फिर अंग्रेजों का निस्तार नहीं है । मराठों के दल-बादल प्रतिहिंसा की आग मन में लिए बैठे थे । पेशवा का अपमान वे किसी हालत में सह नहीं सकते थे। पेशवा के साथ छल-कपट का जो व्यवहार किया गया था उससे खीझ गया था। और अब वह पूना लौट आया था। तेजी से मराठा तलवारें उसकी कमान १.८३