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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१८४

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था और इसका यह परिणाम हुआ कि अंग्रेज़ मराठा शक्तियों को फांसते और संहार करते रहे और पेशवा बाजीराव कम्पनी की सेना की छत्रच्छाया में पड़ा ऐश करता रहा। यदि पेशवा बाजीराव में तनिक भी साहस और राजनैतिक बुद्धि होती, तो वह अंग्रेजों की सहायता से पूना की गद्दी पर बैठकर भी धीरे- धीरे अपने सामन्तों की शक्ति का संगठन कर सकता था और इस प्रकार उभर सकता था । परन्तु वह अपनी सारी शक्ति छोटे-बड़े विरोधी सरदारों से क्रू र बदला लेने में खर्च करता रहा । उसने छोटे-छोटे सरदारों पर इतने अत्याचार किए कि वे सब उसके शत्रु बन गए। उसकी कायरता के कारण उसके सेनापति उससे सन्तुष्ट न थे, न उस पर विश्वास रखते थे। उसके कोष की हालत भी अच्छी न थी, आमदनी के साधन सीमित थे, परन्तु वह अपना सब धन मौज-मज़े में और दान-पुण्य में खर्च कर देता था। जब पूना दर्बार की यह हालत थी तो अंग्रेज़ सरकार को इससे अच्छा सुअवसर महाराष्ट्र संघ को नष्ट करने का और कौन सा मिल सकता था, इसीलिए उसने अपनी सेना की विराट-व्यूह रचना की, जिसका संकेत हमने पिछले परिच्छेद में किया है। वाजीराव एक सुखार्थी पुरुष था । और वह नहीं चाहता था कि अंग्रेजों से कोई झगड़ा हो। क्योंकि वह जानता था कि अब उसकी गद्दी की रक्षा तो अंग्रेजी संगीने ही कर रहीं हैं और उन्हीं की छत्रच्छाया में वह बेफिक्री से मौज-मजा कर रहा था । परन्तु अंग्रेजों की योजना बिल्कुल दृढ़ थी और उन्होंने निश्चय कर लिया था कि पेशवा की गद्दी का समूल नाश कर देना चाहिए। उन्हें सबसे अधिक पिण्डारियों से भय था कि जिनकी शक्ति और संगठन अब दुर्दम्य हो चुके थे। उन्हें भय था कि यदि पिण्डारियों की समूची शक्ति का मराठा संघ से संबंध हो गया, तो फिर अंग्रेजी को हिन्दुस्तान में सांस लेने को जगह न मिलेगी। ये पिण्डारी भयंकर छापामार थे, वे हवा की तरह एक ही झोंके में विनाश और संहार करके गायब हो .१८८