पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१८६

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नए उत्साह और नई उमंगे लिए-अपने-अपने शस्त्र चमकाते हुए- और घोड़ों का करतब दिखाते हुए पूना के बाहर मैदान में एकत्रित थे। इस अवसर पर पेशवा ने अपने सब सेनापतियों की चारों ओर से बुला भेजा था। सेना की पूरी परेड देखने के बाद पेशवा ने बापू गोखले को समूची सेना का अधिपति बना दिया। बापू गोखले का शरीर विशाल, आकृति सुन्दर, रंग गोरा और उठान वीरतापूर्ण थी। वह एक साहसी और दृढ़- निश्चयी पुरुष था। इसके साथ ही पेशवा का फर्मावर सेवक और निर्भय योद्धा था। दुर्भाग्य यही था कि उसका स्वामी वाजीराय पेशवा न वीर था, न दूरदर्शी, न बात का धनी। इस परेड के समय अंग्रेज़ रेजीडेन्ट को नहीं बुलाया गया था। इस समय अंग्रेज़ी सेना चारों ओर से पूना में चली आ रहीं थीं। मामला संगीन होता जा रहा था। एलफिस्टन ने गवर्नर-जनरल को एक खरीता भेजा कि पेशवा अंग्रेजों के विरुद्ध फौज़कशी कर रहा है, तुरन्त अधिक से अधिक अंग्रेजी सेना पूना भेज दी जाय । ३० अक्टूबर को बम्बई की आखिरी रेजीमेन्ट अंग्रेजों की छावनी में पहुंच गई और उसी दिन शाम को अंग्रेजी सेनाओं के जनरल स्मिथ और कर्नल बर्थ की कमाण्ड में शहर से चार मील की दूरी पर खिड़की में युद्ध सज्जा से तैनात कर दिया और उपयुक्त स्थानों पर छोटी बड़ी तोपें लगा दीं। पहले जनरल स्मिथ की सेना मैदान में पहुंची और उसके बाद कर्नल बर्थ की सेना उससे आ मिली। उधर सेनापति बापू गोखले अपनी सेनाएँ सन्नद्ध कर रहा था, किन्तु दूसरी ओर वाजीराव कभी एलफिंस्टन को और कभी उसके भेजे हुए दूतों को यह विश्वास दिला रहा था कि मैं अंग्रेजों से लड़ना नहीं चाहता हूँ और मैं उन्हें अपना परम हितैषी समझता हूँ। तीन नवम्बर को एलफिस्टन ने अपनी लाइट बटैलियन को आज्ञा दी कि वह पूना की ओर आगे बढ़े। जब पेशवा ने यह देखा तो उसने