पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२१४

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-और बाद- हिजमैजस्टी सन १८२७ में अवध के प्रथम बादशाह ग़ाजीउद्दीन हैदर ने अपना तख्तोताज सूना छोड़ इस असार संसार से कूच किया। वे जब पिता के सिंहासन पर बैठे थे तब चौदह करोड़ रुपया शाही खजाने में जमा था, और अवध का राज्य जाहोजलाली से भरपूर था। परन्तु मरते समय अवध का शाही खजाना खाली था । राज्य में अंधेरगर्दी मच रही थी। अंग्रेजों ने ज़ोरोजुल्म करके बादशाह से खूब रुपया ऐंठा था- शाह के कर्मचारियों ने प्रजा को लूटने में सितम ढाया था। इससे बहुत लोग खेती-बाड़ी, घर-बार छोड़ भाग गए थे। खेत सूखे-उजाड़ पड़े थे, गाँव वीरान थे, भले घर के समर्थ साहसी लोग जमीदार डाकू बन गए थे। बुद्धिमान और चरित्रहीन जन ठग बन गए थे। बाकी सब चोर हो गए थे। अत: राज्य भर में चोरों, ठगों, उठाईगीरों का बोलबाला था। कहीं किसी की सुनवाई न थी। पिता गाजीउद्दीन के मरने पर उनके तथा-कथित पुत्र नसीरुद्दीन हैदर गद्दी पर बैठे। गाजी उद्दीननसीर को अपना औरस पुत्र नहीं मानते थे-न उन्हें उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। कहा तो जाता है कि उन्होंने नसीर को मरवा डालने की भी चेष्टा की थी। परन्तु इसी बीच उनकी मृत्यु हो गई । तब नसीर ने दो करोड़ रुपए अंग्रेजों की नज़र कर के अपने लिए हिजमैजस्टी का गौरव युक्त पद क्रय किया। कहने की आवश्यकता नहीं-कि ये दो करोड़ रुपए राजकोश से नहीं-भ्रजा से लूट खसोट कर के दिए गए थे, क्योंकि इस समय राजकोष में फूटी कौड़ी भी न थी। अपनी प्रजा पर और परिवार के लोगों पर नसीर मनमाना अत्या- चार कर सकते थे—इसकी उन्हें छूट थी। अंग्रेजी रेजीडेन्ट उनके किसी काम में दखल नहीं दे सकता था। वह केवल अवध राज्य में अंग्रेज़ों का २१८