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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२४६

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- थे। वह वेश्या-पुत्री अवश्य थी, पर बड़ी ही कोमल, भावुक और नाजुक- मिज़ाज स्त्री थी। इसी से उसने इतनी सी ही बात पर जान दे दी। बादशाह को भारी रंज हुआ। वे अर्धविक्षिप्त से हो गए । मुसाहिबों द्वारा उन्हें प्रसन्न करने के सब प्रयत्न विफल गए। तब हज्जाम ने नया बन्दोबस्त किया । कलकत्ते से नया माल मंगाया। उसने चार यूरोपियन लड़कियाँ जुटा कर उन्हें बादशाह की नज़र कर दिया । अंग्रेजी ड्रेस पहन कर अंग्रेज़ी नाच नाच कर वे बादशाह का दिल बहलाने लगीं, फिर भी बादशाह खुश न हुआ। बेगम के मरने का तो उसे ग़म था ही, उसके चरित्र पर जो उसे संदेह हो गया था उसने भी उसका चित्त बिगाड़ दिया था। नाई को अवसर मिल गया था। उसने अवसर पा कर संकेत से बादशाह पर बेगम के चरित्र को संदिग्ध बताने में कोताही नहीं की थी। इसी समय राजा दर्शनसिंह को भी अपनी अभिसंधि पूरा करने का सुयोग मिल गया। कहने को राजा दर्शनसिंह दीवान थे, पर हक़ीक़त में बादशाह को सुन्दरियाँ जुटाना उनका काम था। न जाने कितनी भाग्य- हीना, अनाथा स्त्रियाँ उसने बादशाह के महल में धकेल दी थीं। अब उसने अवसर पाकर अपनी बहुत अधिक राजभक्ति जता कर कहा--"मुल्के जमा- निया, हुक्म हो तो काश्मीर जा कर वहाँ से हुजूर के लिए वह ताज़ा नया तोहफ़ा लाऊँ कि प्रालीजाह मृतबेगम को भूल जायँ । राजा दर्शनसिंह का प्रस्ताव बादशाह ने सहर्ष स्वीकार किया और एक लाख रुपया दे कर राजा दर्शनसिंह को काश्मीर भेज दिया । और हिदायत कर दी कि काश्मीर से जो लौंडी खरीद लाई जाय वह काश्मीर भर में एक होनी चाहिए ; वरनासिर धड़ पर नहीं रहेगा। मतलब साध कर दर्शनसिंह चलते बने। काश्मीर जाने की उन्हें ज़रूरत न थी। हाँ, दर्वार की हाज़िरी से छह माह के लिए मुक्त हो चुके थे। हज्जाम अभी आँखों में खटकता था, अब जो उसने अंग्रेज़ छोकरियों को बादशाह के हुजूर में पेश किया तो राजा दर्शनसिंह ने यह चाल खेली। और अब वह कानपुर अपने घर में बैठ कर किसी सुन्दर लड़की की तलाश २५०