सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उन्होंने मुलाक़ात नहीं की थी-यद्यपि बादशाह और उसके अमीर-उमरा मुलाकात के इन्तजाम में जमीन आसमान एक कर रहे थे । खुद बादशाह मुल्के जमानिया हुक्म पर हुक्म दे रहे थे किन्तु जनाब गवर्नर-जनरल बहादुर अभी रेजीडेण्ट से सलाह-मश्विरे में संलग्न थे । इस वक्त भी मेजर वेली उनके सामने बैठे थे। गवनर-जनरल ने कहा- "मेजर वेली, अब दुनिया का नया दौर शुरू हुआ है । इंगलैंड में नई शक्तियाँ काम कर रही हैं। अब मैं चाहता हूँ कि आनरेबुल ईस्ट इण्डिया कम्पनी हिन्दुस्तान की सर्वोच्च शासन सत्ता बन जाए। और व्यापार के अधिकार प्राम अंग्रेजों के लिए खुले छोड़ दिए जाएँ । इसलिए अब मैं यही नीति अमल में लाना चाहता हूँ-कि हम भारत में अंग्रेजों की एक सार्व- भौम सत्ता की स्थापना कर सकें।" "क्या इस में इंग्लिस्तान की सरकार का भी कुछ हिस्सा रहेगा ?" "यही, कि वह हमारी ब्रिटिश भारत सरकार की संरक्षक रहेगी। अब हमारे सामने तीन बड़ी बाधाएँ हैं, जो हमारे बाजू कमज़ोर करती हैं। मध्यभारत में सिंधिया-मैं चाहता हूँ कि इस बाधा को दूर करके बम्बई प्रान्त को आगरा के साथ जोड़ दूं । मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि अपनी राजधानी में महाराज जंकोजी सिंधिया को उन आपत्तियों ने घेर रखा है जो हम ने उसके चारों और खड़ी की हैं। अब देखना यह है कि यह इस निर्बल किन्तु अत्यन्त वफ़ादार नौजवान राजा की मुसीबतों से क्या फ़ायदा उठाया जा सकता है। इसी से मेरा चीफ़ सेक्रेटरी वहाँ के रेजीडेण्ट से इस मामले में पत्र व्यवहार कर रहा है कि सिंधिया महा- राज उन गम्भीर आपत्तियों से घिरा हुआ होने के कारण पदत्याग करना पसन्द करेगा या नहीं। यदि वह मंजूर कर ले तो एक सुन्दर पैन्शन कम्पनी की सरकार उसे देगी, जो उसी की रियासत की अमदनी में से अदा की जायगी।" “यह तो बहुत अच्छी योजना है योर एक्सीलेन्सी, आप की नीति से मैं सहमत हूँ।" २६८