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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२७९

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सुधार सम्बन्धी संस्थाओं और व्यक्तियों को माफ़ी की ज़मीन, जागीरें मिली हुई थीं जिन्हें लाखिराज कहते थे । अभी तक इन माफ़ीदारों पर अंग्रेज़ों की नज़र नहीं गई थी, न उन्होंने इन में हस्तक्षेप किया था। परन्तु लार्ड वैटिंक ने हर जिले के कलक्टरों को यह अधिकार दे दिया कि वह अपने जिले की जिस लाखिराज ज़मीन को उचित समझे कम्पनी के नाम ज़ब्त कर लें। इस आदेश के कारण अनेक पुराने खुशहाल घराने बर्बाद हो गए और उन्हें उनके घरबार से निकाल बाहर कर दिया गया। अब उसने जागीरदारों, ज़मींदारों और जायदाद वालों की ओर रुख किया। वह नहीं चाहता था कि कोई पुराना घराना सम्मानित रहे। अतः जो ज़मींदार या जागीरदार अपुत्र मर जाते उनकी ज़मीन-जायदाद छीन कर ज़ब्त कर ली जाती थी। पिछले मालिकों के दत्तक पुत्रों-भाई- भतीजों के सब अधिकारों को रद्द कर दिया गया। इसके अतिरिक्त सब ज़मींदारियों की उसने सबसे ऊँची बोली बोलने वालों को नीलाम कर तीस वर्षों के लिए सैटिलमैंट का विधान किया। जिस ने सभी प्राचीन ज़मींदारों को उखाड़-पछाड़ डाला। सब पुराने घराने उलट-पुलट हो गए। किसानों, व्यापारियों और दुकानदारों से टैक्स और चुंगी के नए नियमों के अनुसार टैक्स लिया जाने लगा। जिसके कारण व्यापार-वाणिज्य और कारोबार में गड़बड़ी फैल गई। यह सब टैक्स बड़ी कठोरता से वसूल । सड़क के ऊपर की दूकानों और सायवानों पर भी टैक्स लिया जाता था। लोगों के धन्धों और औज़ारों पर भी टैक्स लिया जाता था। यहाँ तक कि चाकुओं पर भी टैक्स लगा दिया गया था जो कभी- कभी चाकू की क़ीमत से छह गुना तक होता था । इन सब क़ानूनों से उस समय के समाज के सब छोटे-बड़ों का ढाँचा ही उलट-पुलट हो गया। . किए जाते