भगाया । बैंतों से पीटे हुए कुत्ते की भाँति शाहशुजा दोस्त मुहम्मद से मार खा कर फिर लुधियाने में पा कर अंग्रेज़ों का बन्दी हो गया। इस चाल में मात खा कर अंग्रेजों ने सिंध नदी के निचले हिस्सों पर क़ब्ज़ा करना और सिंध के किनारों पर अपनी छावनियाँ बनाना प्रारम्भ किया। रणजीतसिंह ने इस का विरोध तो किया पर वह अंग्रेजों से बिगाड़ने की हिम्मत न कर सका । और इस प्रकार सिंध विजय के उस के मनसूबे मन ही में रह गए । वह अब बहुत वृद्ध हो चुका था। तथा अपनी खालसा सेना को काबू में रखना उसे दूभर हो रहा था । अंग्रेज़ अब वहाँ चाँदी की गोलियां चला रहे थे। इससे रणजीतसिंह के सम्मुख बड़ी- बड़ी उलझनें पैदा हो रही थीं-वह उन्हीं में अपने अन्तिम क्षण तक उलझा रहा । और जब वह सन् १८३६ में मरा तो अंग्रेजों के फैलाए हुए जाल में फंस कर देखते ही देखते उसका विशाल सिख साम्राज्य विध्वंस हो गया । सिंध नदी की जो सर्वे की गई थी उसके गुल थोड़े दिन बाद खिले जब कि धीरे-धीरे सिंध-पंजाब-बलोचिस्तान, चित्तराल और अफ़ग़ानिस्तान का भी कुछ भाग अंग्रेजी राज्य में मिल गया और ब्रिटिश-भारतीय साम्राज्य की साइन्टिफिक फ्रन्टियर स्थापित हो गया। सिंध नदी की सर्वे करने और रणजीतसिंह को ब्रिटेन के राजा की सौग़ात घोड़ा-गाड़ी भेंट करने एक चतुर अंग्रेज़ लेफ्टिनेन्ट वर्क्स गया था। लार्ड बैंटिंक ने उसे वहाँ से मध्य एशिया भेज दिया कि वह मध्य एशिया और भारत की बीच की ताक़तों को कम्पनी की ओर करे । उसके साथ डाक्टर गेरार्ड, मुन्शी मोहनलाल और सरवेयर मोहम्मद अली थे। ये लोग पहले अफ़ग़ानिस्तान पहुँचे । उसके बाद भाँति-भाँति के बहाने बना कर मध्य एशिया में घूमते-वहाँ का सर्वे करते-और नक्शे बनाते रहे। और जब लार्ड वैटिङ्क अपनी यात्रा सफल करके कलकत्ते लौटा तो ये लोग भी अपनी अफ़ग़ानिस्तान की पूरी भूमिका तैयार कर बहुत-से नक्शे-मानचित्र-और गुप्त कागज-पत्र लेकर भारत लौट आए।
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२८१
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