रणजीतसिंह से भेंट पंजाब में सिख साम्राज्य का संस्थापक महाराज रणजीतसिंह सुकर- चकिया मिसल के नेता महासिंह का पुत्र था-वह बचपन ही में चेचक से अपनी एक अाँख खो चुका था। बारह वर्ष की आयु में अपने पिता की मृत्यु के बाद वह अपने मिसल का नेता बन गया और सोलह वर्ष की आयु में जब उस का विवाह कन्हैया मिसल में हुआ, तो इन दो मिसलों के मिलान से युवा रणजीतसिंह ने एक नई शक्ति संगठित कर ली। इन दिनों अहमदशाह अब्दाली का पोता ज़मानशाह अफ़ग़ानिस्तान का शासक था । उसने पंजाब के कुछ भाग और लाहौर पर अधिकार कर लिया था। रणजीतसिंह ने उसे प्रसन्न करके लाहौर पर अधिकार कर लिया । और उन्नीस वर्ष की आयु में वह लाहौर का राजा बन बैठा । इसके बाद भंगी मिसल से उसने अमृतसर भी दखल कर लिया। तथा आस पास के इलाक़ों को जीत कर सतलुज नदी तक सारा मध्य पंजाब अपने अधीन कर लिया। इसके बाद सतलुज नदी पार करके सिख रियासतों-नाभा, पटियाला, जींद आदि पर उसने हाथ बढ़ाया तथा लुधियाना पर क़ब्ज़ा कर लिया। इस पर दुर्बल सिख रियासतों ने अंग्रेज़ों से हस्तक्षेप की माँग की। पर चतुर अंग्रेज़ों ने इस समय फूट-नीति का सहारा ले--सर चार्ल्स मेटकाफ़ को अमृतसर भेज रणजीतसिंह से सन्धि कर ली। जिस से सतलुज नदी रणजीतसिंह के राज्य की सीमा नियत हुई, और सतलुज के इस पार की सारी सिख रियासतें अंग्रेजी संरक्षण में आ गई । इस सन्धि के हो जाने के कारण रणजीतसिंह अब पूर्व की ओर अपने पैर नहीं बढ़ा सकता था। इसलिए इस समय उत्तर-पश्चिमी सीमा पर उसकी नज़र थी, और वह लड़ाई पर लड़ाई करके अटक, मुलतान, काश्मीर, हजारा, बन्नू, डेराजात तथा पेशावर आदि जीतता हुआ अपना एक नया शक्तिशाली सिंख साम्राज्य खड़ा कर रहा था। उस की सेना
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