“राजा वही है जो सबका स्वामी है, जिसे राजत्व का ज्ञान है और मर्यादापालन की शक्ति है। जिसमें वह नहीं है, वह राजा ही नहीं। उसके प्रति विद्रोह का प्रश्न ही नही उठता।"। "आपने महाराजा चामुण्डराय की हत्या करके कुमार दुर्लभदेव को राजा बनाने की योजना स्थिर की थी?" “रानी राज्य की उन्नति के और स्थिरता के लिए जो ठीक समझे , कर सकती है।" "तो आप स्वीकार करती हैं?" “मैं कुछ स्वीकार नहीं करती।" वीकणशाह ने सब बातें विस्तार से बयान करके कहा, “कि मैं तो भेद लेने को षड्यन्त्र में सम्मिलित हुआ था। मैं महाराज का चिरकिंकर हूँ।" महाराज ने सब बन्दियों को अभी बन्दीगृह में ले जाने तथा महारानी को राजमहल में नज़रबन्द करने की आज्ञा दी। उसके बाद, “ओफ, आफत टली।” कहकर वे मसनद पर लुढ़क गए। दामोदर ने कहा, “अभी आफत नहीं टली महाराज, आफत सिर पर आ रही है।" महाराज फिर घबराकर बैठ गए। उन्होंने कहा, “अब क्या?” दामोदर के संकेत से सामन्तसिंह चौहान ने आगे बढ़कर राजा को प्रणाम किया। राजा ने पूछा, “यह कौन?" महता ने कहा, “महाराज, यह सामन्तसिंह चौहान है-घोघाबापा का पुत्र, आज आठ दिन से महाराज के दर्शन को भटक रहा है।" महाराज के मुख पर वात्सल्य की प्रसन्न मुद्रा छा गई, उन्होंने दोनों हाथ फैलाकर कहा, “आ-आ पुत्र, आहा घोघाबापा, बहुत दिन से देखा नहीं। तू आठ दिन से...ये हराम खोर...” राजा ने भयभीत नेत्रों से विभलदेव शाह की ओर देखा। अभी भी उसके हाथ में वही रक्त-भरी तलवार थी, और वह आद्योपान्त सब नाटक चुपचाप देखता रहा था। दामोदर ने कहा, “महाराज, विपत्ति सिर पर है।" “कैसी विपत्ति भाई, विपत्ति-विपत्ति-विपत्ति का कोई आदि-अन्त भी है?" “महाराज, चौहान आपके पास घोघाबापा का सन्देश लाए हैं।" "क्या सन्देश है पुत्र?" महराज, गज़नी का दैत्य नगर-गाँव जलाता-लूटता, सब स्त्री-पुरुषों को तलवार के घाट उतारता गुजरात की ओर धंसा चला आ रहा है।" "गुजरात की ओर?" महाराज ने बालुकाराय की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा। बालुकाराय ने महता की ओर देखा। महता ने कहा, “महाराज, पहले घोघाबापा का सन्देश पूरा सुन लें।" राजा ने फिर सामन्त की ओर देखा। सामन्तसिंह ने कहा, “महाराज, उसने मुलतान को आक्रान्त किया है, और बापा से उसने राह माँगी है।" “राह?" “मरुस्थली की राह, वह मरुस्थली को पारकर सपादलक्ष को जाना चाहता है।"
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