पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१४४

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विश्वासघात रात बहुत देर तक सैनिक खान-पान और रास-रंग में मस्त रहे थे। इससे इस समय वे सब पड़े सो रहे थे। एक-दो प्रहरी अपने स्थानों पर सजग हो पहरा दे रहे थे। महाराज धर्मगजदेव प्रहर रात रहे पुष्कर-तट पर स्नान कर आह्निक पूजन कर रहे थे। पूजन करते- करते उन्हें कुछ असाधारण आहट सुनाई पड़ी, जैसे चुपचाप बहुत-से आदमी रेंगते हुए आ रहे हों। अभी चारों दिशाओं में अँधकार था। उन्होंने पूजा के आसन से बिना उठे ही आँख उठाकर चारों ओर देखा। ऐसा प्रतीत हुआ, बहुत-सी काली-काली मूर्तियाँ चारों ओर से उनके निकट चली आ रही हैं। क्षणभर बाद ही उन्हें प्रतीत हुआ कि विश्वासघात हुआ है। वे तत्क्षण ही आसन छोड़कर उठ खड़े हुए। इसी समय प्रहरी ने भयसूचक भेरी-नादकिया। और उसके साथ ही अल्लाहो अकबर' के गगनभेदी नाद के साथ अमीर के बलोची पठानों ने सोते-बैठे-उनींदे सभी राजपूतों को काटना प्रारम्भ कर दिया। साथ ही छावनी में भी आग लगा दी। छावनी धांय-धांय जलने लगी। महाराज उसी असज्जित अवस्था में पुकार- पुकार कर तलवार घुमाते हुए अपनी सेना की व्यवस्था करने लगे। उन्होंने तत्क्षण एक सवार अजमेर को सेना की सहायता के लिए दौड़ा दिया। राजपूत, जो जहाँ जिस अवस्था में थे, उनके हाथ जो शस्त्र लगा, उसी को लेकर वे शत्रुओं से मोर्चा लेने लगे। परन्तु एक तो वे बहुत कम थे, दूसरे किसी के पास शस्त्र था ही नहीं, किसी ने कवच पहना था, कोई नंग- धडंग था। परन्तु थोड़ी ही देर में कुछ सैनिक सज्जित होकर महाराज के चारों ओर आ जुटे। शत्रुओं ने महाराज को ग्रास लिया था, और उनपर हज़ारों तलवारें छा रहीं थीं। राजपूत प्राणप्रण से महाराज तक पहुँच कर उनकी रक्षा करने का भगीरथ प्रयत्न करने लगे। महाराज धर्मगजदेव नंगे, बदन, पीताम्बर धारण किए दोनों हाथों से तलवार चला रहे थे और उनके शरीर से झर-झर रक्त बह रहा था। उनका वीर-दर्प देख शत्रु स्तम्भित रह गए। तलवार से तलवार भिड़ गई। बर्छियाँ अंतड़ियों को चीरने लगीं। महाराज क्षण-क्षण पर अजमेर से सहायता की प्रतीक्षा कर रहे थे। हर क्षण पर चर सूचना दे रहा था, सेना नहीं आ रही है। इसी समय जंगल में छिपे हुए एक हजार बलोची घुड़सवार बाज की तरह महाराज पर टूट पड़े। महाराज ने मस्तक ऊँचा करके देखा, मृत्यु उनका आलिंगन करने को हाथ पसार रही है। ‘जय शाकम्भरी' कहकर वे अन्धाधुन्ध तलवार चलाने लगे। देखते ही देखते उनके मुट्ठी-भर राजपूत कटने लगे। महाराज की तलवार भी एक पठान की तलवार से टकराकर दो टूक हो गई। उनके तीर उनके अंगों में अटक रहे थे। उन्होंने निरुपाय इधर- उधर देखा। एक दुर्दीत पठान ने कमान गले में डालकर उन्हें खींच लिया। साथ ही तलवार का एक भरपूर हाथ उनके मोड़े पर पड़ा। महाराज आकाश से टूटे नक्षत्र की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़े। शत्रुओं ने अल्लाहो-अकबर का नारा बुलन्द किया; जो राजपूत बचे थे, वहीं आ जूझे, वे सब तिल-तिल कटकर खेत रहे। महाराज धर्मगजदेव के रणस्थली में काम आने का समाचार शीघ्र ही अजमेर पहुँच गया। महाराज के अंगरक्षकों ने महाराज का शव मुर्दो के ढेर से निकालकर बड़े यत्न से किले