पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१७०

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6 " “यह कैसी बात?" राव ने भौहें सिकोड़ कर कहा। वह योद्धा इस चाणक्य की गहरी राजनीति नहीं समझा। “महाराज, मालवा में वारांगनाओं का प्रामुख्य है। वीर और विद्वान, दोनों ही उनके उपासक हैं, इसी में मालवराज का पतन है।" 'और पाटन?" भीमदेव ने प्रश्न किया। “पाटन का प्रश्न तो एक स्वप्न है, जिसे सच्चा किया जा सकता है।" “परन्तु उसके लिए भी तो सामर्थ्य चाहिए।' “कुमार, तुम्हारा गौरव ही पाटन की सामर्थ्य है। वह अभी तक प्रच्छन्न है। अब उसके प्रकट होने का काल है।” भस्मांकदेव ने स्नेह-प्रेरित स्वर में ये शब्द कहे और फिर मन्द मुस्कान बिखेरते हुए उनकी ओर देखा। सोरठ का राव यह सुनकर प्रसन्न हो गया। उसने अपनी तलवार ऊँची करके कहा, "उसके लिए तो यह तलवार भी है।" "ठीक है, तलवार धर्म-शत्रु के लिए और केवल राजनीति घरू शत्रुओं के लिए हमें यह सूत्र नहीं भूलना है।” महता ने कहा। "हाँ, हाँ।” भस्मांकदेव ने मग्न भाव से कहा, “महता, मालव से तुम निश्चिन्त रहो। मालव पाटन पर दृष्टि नहीं डालेगा।" “सो कैसे?” राव ने आश्चर्य से कहा। “यह ब्राह्मण उसका पक्का बन्दोबस्त कर आया है। "बड़ा काम हुआ देव,परन्तु किस प्रकार?" महता ने प्रशंसा की दृष्टि भस्मांकदेव पर डाली। भस्मांकदेव ने हँसकर कहा, “मुझे कुछ अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ा। मालवराज तो राजधानी में थे ही नहीं, मेदपाट में थे। मुझे केवल नाटिका का आयोजन करना पड़ा। उसमें मालव के सब नामांकित विद्वान और साहूकार आमन्त्रित किए गए। मुंज की विधवा महारानी कुसुमावती भी पधारी। नाटिका में तैलपराज का एक अभिनय हुआ उसमें तैलपराज ने मालवराज मुंज के सिर काटने का गर्वपूर्ण प्रदर्शन किया। इस पर कुछ पात्रों ने मालव की धर्षणा की। बस, इतने ही से काम हो गया।" महारानी ने क्रोध में आकर उसी क्षण कहा, “नाटिका तुरन्त बन्द कर दी जाए, और मालव की गज-सेना इसी क्षण तैलप पर चढ़ाई करे। महारानी के स्वभाव से मैं परिचित था, मैंने यही आशा कर रखी थी और ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि मालव के सब पण्डितगण और नागरिक इसका अभिनन्दन करें, सो ऐसा ही हुआ। अब मालवराज ने भी अनुमति दे दी। है। मालव गजसैन्य को, मैं तैलपराज पर अभियान करता छोड़ आया " सोरठ का राव प्रसन्नता का हास्य हँसा। दामोदर ने संतोष की साँस ली। कुमार भीमदेव ने कहा, “अब नान्दोल" “वहाँ की सूचना स्थान-पुरुष ने मुझे दी है। महाराज धर्मगजदेव और सपादलक्ष के अतर्कित पतन से वह विमूढ़ हो गया है। आमेर के दुर्लभराय की नीति पर चलकर उसने अमीर से युद्ध करने का खतरा नहीं उठाया, इससे उसकी सैन्य-शक्ति तो वैसी ही है, परन्तु अमीर ने नान्दोल को भूमिसात् कर दिया है। और अब उसे इसी को बसाने में दस वर्ष लग जायेंगे। धन भी अपार खर्च होगा। फिर, अभी उसे वापसी में अमीर का भय है। इसलिए