पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१७३

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ब्राह्मण की कूटनीति सूर्योदय होते-होते तो सारा पाटन ही सूना हो गया। जिन गली और राजमार्गों पर सैनिकों, घोड़ों, हाथियों का जमघट जमा रहता था, वे सब सूने हो गए। जिन हाट-बाज़ारों में भाँति-भाँति का क्रय-विक्रय होता था, वहाँ सन्नाटा छा गया। दरबार गढ़ की सारी चहल-पहल खत्म हो गई। केवल पाँच सैनिक दरबार गढ़ की ड्योढ़ियों में बैठे और दो-चार भीतर-बाहर आते-जाते दीख पड़ते थे। घरों के द्वार बन्द, दूकानों के द्वार बन्द, देवालयों के पट बन्द और विद्यालयों के द्वार बन्द। पनघट सूने, ताल-सरोवर-नदी-कूप-बावड़ी सब सूने। जैसे आज सूर्य व्यर्थ ही पाटन पर प्रकाश बखेर रहा था, वायु व्यर्थ ही चल रही थी। इस प्रकार आज पाटन जीवित श्मशान हो रहा था। चण्ड शर्मा ने नगर में ड्योढ़ी फिरवा दी–कोई जन नगर से बाहर न जाए। नगर के फाटक बन्द करा दिए गए और अपने आदेशों और कूटनीति का प्रभाव देखने वह स्वयं घोड़े पर सवार होकर नगर में निकले। उनके अकेले अश्व की टापों की आवाज़ उन्ही के कानों में आघात करने लगी। दोपहर दिन चढ़े दोनों ब्राह्मणों की मन्त्रणा-सभा बैठी। मन्त्रणा-सभा में कुल जमा दो ही आदमी थे। चण्ड शर्मा और भस्मांकदेव। भस्मांकदेव ने कहा, “यहाँ तक तो हुआ अब?" "अब यह, कि आप इसी क्षण सिद्धपुर चले जाइए और दुर्लभदेव के सम्मुख भली- भाँति रोना गाना करके कहिए कि राजा, प्रजा, सेठ, साहूकार सब कोई पाटन को सूना छोड़कर भाग गए हैं, बाणबली भीमदेव सोमनाथ में अमीर से युद्ध करने सारी सेना ले गए हैं। सारा राजकोष राजा ले गए हैं। पाटन अरक्षित है-आप धीर-वीर, प्रतापी, धर्मात्मा और सब भाँति योग्य पुरुष हैं, जैसे सम्भव हो, पाटन की रक्षा कीजिए। जो नगर-जन वहाँ हैं उन्हें अभय दीजिए। आप देश के राजा हैं राजधर्म पालिए। प्रजा के जान-माल की रक्षा कीजिए-इस प्रकार की बातें आप कहिए, परन्तु चेष्टा ऐसी कीजिए कि वह न तो पाटन आए, न अपनी सेना लाए। उसकी समूची ही सैन्य-शक्ति को हमें समय-कुसमय के लिए सुरक्षित और अक्षुण्ण रखना है। कदाचित् अमीर से निर्णायक युद्ध आबू में ही करने का अवसर आए, तो यही सैन्य हमारे पृष्ठ का बल होगी, यह हमें न भूलना चाहिए। आप ऐसा कीजिए कि वह अमीर को ठण्डा करके पाटन ले आए और अमीर पाटन की बिना कोई हानि किए आगे को सरक जाए। इतना हो कि बस। फिर वापसी में दैव-विपाक से वह बच आया भी तो हम उसे समझ लेंगे। यदि आप ही दुर्लभ के प्रतिनिधि बनकर अमीर से मिल लें और पाटन में हमीं अमीर का स्वागत करें और पाटन की तनिक भी क्षति बिना किए उसे प्रभास की राह पर धकेल दें, तो और भी अच्छा है।... 'समय बहुत कम है और काम अधिक है। इसलिए देव, आप अभी, इसी क्षण सिद्धपुर की ओर कूच कर जाएँ, मैं गुप्त राजकोष आदि की सुरक्षा-व्यवस्था करके नागरिकों की सहायता से तब तक अमीर के स्वागत की तैयारियाँ कर रदूंगा।” देव सहमत हुए तथा