पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

किमाश्चर्यमतः परम् जिस समय गज़नी का यह आततायी, उत्तर भारत को इस प्रकार रौंदता हुआ, नगर-जनपद सबको आग की भेंट करता हुआ-सोमनाथ पाटन को भूमिसात् करने बढ़ा चला जा रहा था, उस समय दक्षिण का चोल राजा छह लाख अश्वों का अधिपति था। परन्तु उसने आँख उठाकर भी इस आततायी की ओर नहीं देखा। वह बर्मा और बंगाल को जीतने ही में लगा रहा। यद्यपि राजा जयपाल की सहायता, दिल्ली, अजमेर, कालिंजर और कन्नौज के राजाओं ने की थी, पर फिर भी उनकी पराजय ही हुई। महमूद के ये आक्रमण तो भारत के लिए भावी खतरे की एक विज्ञप्ति थे। महमूद से पराजित होना उतना निन्दनीय नहीं था, जितना उसके निर्बल और पराजित उत्तराधिकारियों से राज्य को न फेर लेना। सन् 1175 तक पंजाब में महमूद का उत्तराधिकारी शासन करता रहा, जबकि उसका गज़नी का साम्राज्य इससे बहुत पहले ही ध्वस्त कर दिया गया था। सिकन्दर ने भी पंजाब को आक्रांत किया था, पर उस समय भारत छह साल ही में स्वतन्त्र हो गया था। यह चाणक्य और चन्द्रगुप्त जैसे महापुरुषों का चमत्कार था। अन्त में वह खतरा भारत पर वज्र की भाँति टूट पड़ा। अमीर महमूद के बाद शहाबुद्दीन ने भारत पर करारे आघात किए। और अन्ततः उत्तर भारत के हिन्दू राज्यों की लाशों पर मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना होकर रही। इससे देश में जो राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न हुई, वह बड़ी ही कष्टकर थी। केवल देश का शासन ही मुसलमानों के हाथ में नहीं चला गया सामाजिक संस्थाओं, धार्मिक क्रियाओं, आर्थिक व्यवहारों, तथा कला, व्यापार, स्थापत्य, विज्ञान और अन्यान्य राष्ट्रीय-जीवन सम्बन्धी बातों में भी उलट-फेर हो गया। हिन्दुओं की सैनिक-वृत्ति नष्ट कर दी गई। क्योंकि उन्हें इन मुस्लिम विजेताओं ने अपने राज्य में कोई स्थान नहीं दिया। अरबी-फारसी की शिक्षा प्रचलित कर दी गई। यद्यपि सारा भारत कभी भी मुस्लिम सत्ता के अधीन नहीं हुआ, परन्तु सारा देश मुस्लिम शासन से प्रभावित अवश्य हो गया। मुस्लिम राज्य में हिन्दू, नागरिकता के अधिकारों से वंचित हो गए और उन्हें सामूहिक रूप से अर्धदास के रूप में रहना पड़ा। जिन बौद्धों की धर्मपताका नील महानद ब्रह्मपुत्र तक फहरा चुकी थी, इस्लाम ने उन्हें उनकी जन्मभूमि से एकबारगी ही निकाल बाहर किया। ब्राह्मणों के हाथ से राजनीति, शिक्षा और न्याय-शासन छीन लिए गए। और वे गर्वीले राजपूत, जिन्होंने केसरिया बाना पहनकर आततायियों से लोहा लिया, जिनकी बेटियाँ और वधुएँ जौहर की आग में भस्म होकर छार हो गईं, अपनी टूटी तलवारें फेंक हल जोतने लगे। 'नल बावड़ी' की राह उसने कूच किया। चतुर और विश्वस्त पथप्रदर्शक उसे राह दिखा रहे थे। कूच करते-करते ही वह सब व्यवस्था करता जाता था। किसी ने उसकी राह में बाधा न दी। ऋतु सुहावनी थी और मार्ग आरामदेह। चारों ओर हरियाली फैली थी। मार्ग में उसे खारे पानी के सरोवर मिले, जिनमें भाँति-भाँति के दरियाई पक्षी आनन्द से कलरव कर रहे थे। उन्हें इस आततायी के आगमन का कुछ गुमान भी न था। अमीर और उसके बर्बर